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चंद्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करता है।
मंगल की दृष्टि के विषय में भी सूर्य की स्थिति समझनी चाहिए । गुरु की दृष्टि उसमें नेतृत्व के गुण भरती है ।
शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को हर तरह की सुख-सुविधा प्राप्त होती है।
शनि की दृष्टि जीवन में बाधाएं पैदा करती है।
चित्रा के विभिन्न चरणों में गुरु
प्रथम चरण: यहाँ गुरु रोग कारक माना गया है तथापि जातक दीर्घजीवी होता है ।
द्वितीय चरणः यहाँ गुरु व्यक्ति को मित्रों के लिए सर्वस्व जुटा देने वाला बनाता है, फलतः उसका पारिवारिक जीवन दुखी रहता है।
तृतीय चरणः यहाँ गुरु शुभ फल देता है । जातक धनी, स्वस्थ और परिवार से सुखी - संपन्न रहता है।
चतुर्थ चरण ः यहाँ भी गुरु शुभ फल देता है । यदि लग्न में गुरु इसी चरण में हो तो जातक दीर्घजीवी, धनी और विद्वान होता है ।
चित्रा स्थित गुरु पर ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि शुभ होती है। जातक धनी, सुख-सुविधा संपन्न और सत्ता पक्ष के निकट होता है।
चंद्र की दृष्टि का मिश्रित फल होता है। एक ओर जातक समृद्धियुक्त होता है तो दूसरी ओर कामाधिक्य के कारण वह बदनाम भी हो जाता है। मंगल की दृष्टि जातक को विद्वान और साहसी बनाती है ।
बुध की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक धनी, विद्वान और सद्गुणों से युक्त होता है ।
शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप व्यक्तित्व आकर्षक बन जाता है ।
शनि की दृष्टि का भी शुभ फल मिलता है। जातक विविध विषयों का विद्वान होता है पर उसका पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता ।
चित्रा के विभिन्न चरणों में शुक्र
प्रथम चरण: यहाँ शुक्र मिश्रित फल देता है। जातक सुशिक्षित होता है, तथापि उसका व्यवहार निम्न श्रेणी का होता है।
ज्योतिष - कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 154
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