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ज्येष्ठा
ज्येष्ठा नक्षत्र राशि पथ में 226.40 से 240.00 अंश के मध्य स्थित है। इसमें एक सीध में स्थित तीन तारे हैं और आकृति कुंडल की भांति है। अरब मंजिल में इसे 'अल कल्व' कहा गया है। ज्येष्ठा का सामान्य अर्थ 'बड़े से होता है। इसका आधार यह कहा गया है कि एक समय बसंत संपात बिंदु इस नक्षत्र में होने के कारण यह नक्षत्र सबसे ज्येष्ठ या बड़ा माना गया। लेकिन कुछ ज्योतिष शास्त्री इस अर्थ को नहीं मानते।
ज्येष्ठा के अन्य पर्यायवाची नाम हैं-कुलिश तारा, इरतमाव, सुर स्वामी वासवः । सुर स्वामी अर्थात् देवताओं का राजा इंद्र। इंद्र को ही इस नक्षत्र का देवता माना गया है। ग्रहों में बुध को इसका अधिपति माना गया है।
ज्येष्ठा के संबंध में अन्य विवरण इस प्रकार है : गणः राक्षस, योनिः मृग और नाड़ी: आदि। चरणाक्षर हैं-नो, य, यी, यू। यह नक्षत्र वृश्चिक राशि के अंतर्गत आता है, जिसका स्वामी मंगल है।
नक्षत्र के स्वामी बुध के साथ मंगल के तो सम संबंध हैं तथापि बुध उसे शत्रु दृष्टि से देखता है। . __ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातक के बारे में जातक पारिजात' में कहा गया है
ज्येष्ठायामतिकोवान परवधूसक्तो विमु धार्मिक:
यदि जन्म के समय चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो मनुष्य अत्यंत क्रोध करने वाला, परस्त्री में आसक्ति रखने वाला, ऐश्वर्यशाली तथा धार्मिक होता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 179
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