Book Title: Jyotish Kaumudi
Author(s): Durga Prasad Shukla
Publisher: Megh Prakashan Delhi

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Page 205
________________ उत्तराषाढ़ा राशि पथ के 266.40-270.00 अंशों के मध्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है। एक अन्य नाम विश्वम भी है। अरबी में इसे अल बलदाह कहते हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चार तारे हैं तथा उसकी स्थिति एक मचान अथवा शैया की तरह अर्थात चौकोर है। नक्षत्र का देवता विश्व देव कहा गया है। सूर्य को उसका अधिपत्य दिया गया है। प्रथम चरण का स्वामी: गुरु, द्वितीय चरण का स्वामी: शनि, तृतीय चरण का स्वामी: शनि तथा चतुर्थ चरण का स्वामीः गुरु है। गण: मनुष्य, योनिः नेवला तथा नाड़ीः अंत मानी गयी है। चरणाक्षर हैं: भे, भो, ज, जी। इस नक्षत्र के प्रथम तीन चरण मकर राशि एवं अंतिम चरण कुंभ राशि में होता है। दोनों राशियों का स्वामी शनि है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातकों का शरीर सुगठित, नाक लंबी, आँखें चमकीली होती हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक तथा स्वभाव विनम्र होता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातक शुद्ध हृदय, प्रदर्शन-प्रियता से दूर, उच्च पद पर होने के बावजूद दंभ रहित तथा परोपकारी वृत्ति के होते हैं। वे सभी का आदर करना जानते हैं, विशेषकर नारी जाति के प्रति उनमें एक हार्दिक सम्मान की भावना होती है। अपने कार्य-व्यवहार में सदैव ईमानदारी बरतने वाले ये जातक पारदर्शी होते हैं। अपने कार्य के प्रति, सहयोगियों के प्रति उनमें एक निष्ठा का भाव होता है। वे कभी किसी को धोखा नहीं देते। स्वयं भी धोखा पंसद नहीं करते तथा धोखेबाजों से दूर रहते हैं। उनमें एक दृढ़ता भी होती है, जो उन्हें अनीति के सामने झुकने नहीं देती। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 203 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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