Book Title: Jyotish Kaumudi
Author(s): Durga Prasad Shukla
Publisher: Megh Prakashan Delhi

Previous | Next

Page 207
________________ उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी-प्रथम चरणः गुरु, द्वितीय चरण: शनि, तृतीय चरण: शनि, चतुर्थ चरणः गुरु उत्तराषाढा नक्षत्र में सूर्य के फल __ प्रथम चरण: यहाँ सूर्य के कारण जातक जल्दी क्रोधित हो जाने वाला होता है। द्वितीय चरण: यहाँ जातक शांतिप्रिय, एकांत प्रिय, निष्पक्ष एवं उद्यमी वृत्ति का होता है। तृतीय चरण: जातक चतुर होता है। __चतुर्थ चरणः यहाँ सूर्य जातक के लिए दीर्घायु कारक बनता है। वह अधिकार-संपन्न भी होता है। उत्तराषाढा नक्षत्र में स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि वही फल होते हैं, जो मूल नक्षत्र में होते हैं। केवल सूर्य ही नहीं, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि ग्रहों के संबंध में यही बात लागू होती है। पुनरावृत्ति दोष से बचने के लिए यहाँ सूर्य एवं अन्य ग्रहों पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल नहीं दिये जा रहे हैं। पाठक इन्हें जानने के लिए मूल नक्षत्र एवं पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों से संबंधित अध्यायों में यह वर्णन पढ़ सकते हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चंद्र के फल . प्रथम चरण: यहाँ जातक की संगीत में रुचि होती है। पैतृक संपत्ति भी पर्याप्त होती है। जातक में परस्त्रीगमन की लालसा बनी रहती है। द्वितीय चरण: यहाँ चंद्र के शुभ फल मिलते हैं। जातक विद्वान एवं धनी होता है। लेकिन उसमें कुछ पाखंड प्रियता भी होती है। यद्यपि जातक कृपण मनोवृत्ति का होता है तथापि स्वयं को उदार एवं दानी दर्शाता है। तृतीय चरणः यहाँ चंद्र हो तो जातक को शीतल प्रदेश या शीतल ऋतु परेशान कर सकती है। चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र कोई विशेष फल नहीं देता। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में मंगल के फल प्रथम चरणः शिक्षा में व्यवधान आते रहते हैं। जातक के लिए पिता का व्यवसाय ही उपयुक्त रहता है। द्वितीय चरण: यहाँ मंगल जातक को पशु पालन के क्षेत्र में ले जाता ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 205 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244