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ऐसे जातकों में सहित्यिक प्रतिभा भी होती है तथा बहुत जल्दी उनकी यह प्रतिभा प्रकाश में आ जाती है। वे ऊंची से ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के योग्य होते हैं। __ अपनी सहृदयता के कारण वे लोकप्रिय भी हो जाते हैं। मनोविज्ञान एवं स्पर्श-चिकित्सा के क्षेत्र में वे दक्षता प्राप्त कर सकते हैं। उनमें ज्योतिष शास्त्र के प्रति भी रुचि होती है तथा वे एक अच्छे सुलझे हुए विद्वान ज्योतिषी भी बन सकते हैं। उनमें चिकित्सा क्षेत्र में नाम कमाने की भी क्षमता होती है।
विडम्बना ही है कि ऐसे जातकों को अपने प्रियजन से ही काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अपनी उदारता के कारण वे बिना मांगे सबकी सहायता के लिए सन्नद्ध रहते हैं तथापि स्वयं उन्हें मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है, विशेषकर भाइयों से। ऐसे जातकों को माता-पिता का भी पूरा स्नेह मिलता है। माता से पूर्ण स्नेह प्राप्त होता है जबकि पिता से पूर्ण संरक्षण।
ऐसे जातक प्रत्यक्ष में स्वस्थ नजर आते हैं लेकिन वे शरीर में कोई चोट बर्दाश्त नहीं कर पाते। उन्हें श्वास, मूत्र संबंधी रोग या मधुमेह की शिकायत हो सकती है। कामातिरेक उन्हें गुप्त रोग भी लगा सकता है। ऐसे जातकों को शीत ऋतु से बचना चाहिए। . इस नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सुंदर होती हैं। ऐसी जातिकाओं की मूल प्रकृति तो शांत रहने की है तथापि उनका क्रोध भी प्रचंड स्वरूप धारण कर सकता है, फलतः लोग उन्हें ठीक से समझ नहीं पाते।
ऐसी जातिकाओं की स्मरण शक्ति भी अत्यंत तीव्र होती है। वे उदारता की प्रतिमूर्ति कही जा सकती हैं, सबकी सहायता के लिए तत्पर। एक विशेषता यह है कि वे 'नेकी कर कुएं में डाल' वाली उक्ति पर विश्वास करती हैं। अपनी उदारता सहायता के बदले कुछ नहीं चाहतीं।
ऐसी जातिकाओं में विज्ञान में गहरी रुचि होती है तथा वे एक सफल कुशल चिकित्सक बन सकती हैं।
ऐसी जातिकाएं पति को पूर्ण निष्ठा से प्यार करती हैं तथापि वैवाहिक जीवन विशेष सुखी नहीं रहता। पति से लंबे अलगाव के योग आते ही रहते हैं। __ ऐसी जातिकाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए। उन्हें छाती एवं मूत्र-मार्ग संबंधी रोग हो सकते हैं।
शतभिषा के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं-प्रथम चरण: राहु, द्वितीय एवं तृतीय चरणः शनि, चतुर्थ चरणः गुरु।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 221
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