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स्वाभाविक है कि ऐसे जातकों में प्राचीन संस्कृतियों एवं इतिहास के अध्ययन की गहरी रुचि हो। खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र में भी उनकी पैठ होती है। रुढ़िवादी होने के बावजूद वे वैज्ञानिक समाधानों, शोधों में प्रवृत्त रहते हैं। उनमें काव्य प्रतिभा भी होती है।
ऐसा कहा गया है कि रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक प्रायः विदेश में ही बसने के आकांक्षी होते हैं और बसते भी हैं।
ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन प्रायः सुखी बीतता है। पत्नी सुशील, सुगृहिणी होती है, लेकिन ऐसे जातकों को पिता या परिवार से सहायता न मिलने के फल कहे गये हैं।
रेवती नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं बेहद सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व वाली होती हैं। लेकिन उनमें हठ कुछ ज्यादा ही होता है। वे भी ईश्वर भक्त तथा परंपरागत रीति-रिवाजों का पूर्ण पालन करने वाली होती हैं।
कला, साहित्य या गणित विषयों में उनकी विशेष रुचि होती है। ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन सुखी होता है तथापि यह भी कहा गया है कि ऐसी जातिकाओं को आर्द्रा नक्षत्र में जन्मे जातक से विवाह नहीं करना चाहिए। ऐसा विवाह स्थायी नहीं रह पाता।
रेवती के प्रथम चरण का स्वामी गुरु, द्वितीय एवं तृतीय का शनि तथा चतुर्थ का गुरु माना गया है।
रेवती में सूर्य के फल
प्रथम चरणः यहाँ सूर्य शुभ फल देता है। जातक जन्मजात प्रतिभा से युक्त, धनी, सुंदर, विद्वान तथा लोकप्रिय होता है। वह साहसी तथा कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता।
द्वितीय चरणः यहाँ शुभ फल नहीं मिलते। तृतीय चरणः यहाँ सूर्य की स्थिति विशेष फलदायी नहीं होती।
चतुर्थ चरण: यहाँ सूर्य के शुभ फल मिलते हैं। यदि सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक उच्च पद पर आसीन होता है।
रेवती नक्षत्र में चंद्र के फल
प्रथम चरणः यहाँ जातक विद्वान, समृद्धिशाली, व्यवहार-चतुर एवं सुखी परिवार वाला होता है। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 236
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