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त्ति का होता है। वह सदैव असंतुष्ट भी रहता है। ससुराल पक्ष से लाभ होने की संभावना बनी रहती है।
द्वितीय चरण: यहाँ शनि सुखी जीवन का द्योतक होता है तथापि जातक की पत्नी रुग्ण ही रहती है। जातक में प्रतिहिंसा की भावना भी होती हे।
तृतीय चरणः यहाँ शनि के कारण जातक बुद्धिमान, विद्वान लेकिन घोर अविश्वास प्रकृति का होता है। फलतः लोग भी उसका विश्वास नहीं करते।
चतुर्थ चरणः यहाँ शनि हो तो जातक मितभाषी और उच्च पद पर आसीन होने की क्षमता देता है।
श्रवण नक्षत्र स्थित शनि पर अन्य ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि दरिद्र जीवन की सूचना देती है। पत्नी के भी सुंदर होने के संकेत मिलते हैं। ___ चंद्र की दृष्टि हो तो जातक सच्चरित्र लेकिन मातृ-स्नेह से वंचित रहता है। मंगल की दृष्टि विदेश में वास करने का संकेत देती है।
बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक धनी एवं शासन में उच्च पद पर होता है।
गुरु की दृष्टि के भी शुभ फल मिलते हैं। जातक हष्ट पुष्ट, प्रतिरक्षा सेवाओं में, उच्च पद पर मंत्री तुल्य होता है।
शुक्र की दृष्टि के सामान्य फल मिलते हैं।
श्रवण नक्षत्र में राहु के फल
प्रथम चरण: जातक के लिए शुभ नहीं होता।
द्वितीय चरण: जातक शांतिप्रिय होता है लेकिन पत्नी के स्वभाव के कारण दुखी रहता है।
तृतीय चरण: जातक विद्वान लेकिन प्रतिहिंसा की भावना से भरा होता है। चतुर्थ चरण: जातक विनोदी वृत्ति का होता है।
श्रवण नक्षत्र में केतु के फल
प्रथम चरणः जातक धनी होता है। द्वितीय चरणः जातक मानसिक अवसाद का शिकार रहता है। तृतीय चरण: जातक पत्नी के कारण दुखी रहता है। चतुर्थ चरणः पत्नी एवं बच्चों से जातक दुःख ही पाता है।
ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 215
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