Book Title: Jyotish Kaumudi
Author(s): Durga Prasad Shukla
Publisher: Megh Prakashan Delhi

Previous | Next

Page 218
________________ धनिष्ठा धनिष्ठा नक्षत्र राशि पथ में 293.20 अंशों से 306.40 अंशों के मध्य स्थित है। धनिष्ठा के पर्यायवाची नाम हैं अविहा एवं वसु । अरबी में उसे साद अस सुद कहा जाता है। घनष्ठा का अर्थ है, अत्यंत प्रसिद्ध । धनिष्ठा धन की विपुलता का सूचक है। एक अर्थ यह भी है कि वह स्थल जहाँ धन रखा जाए। धनिष्ठा के देवता वसु हैं, जिसकी संख्या आठ हैं। ये हैं धरा, ध्रुव, सोम, अहा, अनिल, अनलोर, प्रत्यूष एवं प्रवष । धनिष्ठा का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। कुछ लोगों के अनुसार धनिष्ठा आठ तारों को मिलाकर बनाया गया है तो कुछ लोग तारों की संख्या केवल चार मानते हैं। धनिष्ठा की आकृति मृदंग की तरह अनुमानित की गयी है। गणः राक्षस, योनिः सिंह एवं नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं-ग, गी, गू, गे। धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे जातक अत्यंत बुद्धिमान, विविध विषयों के ज्ञाता, 'मनसा, वाचा, कर्मणा' किसी को ठेस न पहुँचाने वाले, धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। वे जीवन में अपने बाहुबल से आगे बढ़ते हैं। सामान्यतः ऐसे जातक यथाशक्य किसी के विपरीत मत देने में हिचकते हैं। यह इसीलिए कि उससे किसी को ठेस न पहुंचे। इस नक्षत्र में जन्मे जातकों की इतिहास के अलावा विज्ञान में भी रुचि होती है तथा वे इन क्षेत्रों में इतिहासज्ञ या वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 216 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244