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मूल
__ मूल नक्षत्र राशिपथ में 240.00 253.20 अंशों के मध्य स्थित है एवं धनुराशि (स्वामी : गुरु) के अंतर्गत आता है। पर्यायवाची नाम है-असुर, भुतऋक। अरबी में इसे 'अंश सौलाह' कहते हैं। इस नक्षत्र में ग्यारह तारे हैं तथा आकृति सिंह की पूंछ की भांति है। नक्षत्र देवता राक्षस तथा स्वामी ग्रह केतु है। गण: राक्षस, योनिः श्वान तथा नाड़ीः आदि है। चरणाक्षर हैंये यो भ भी। नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि (स्वामी : गुरु के अतंर्गत आते हैं। मूल नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी-प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरणः शुक्र, तृतीय चरणः बुध, चतुर्थ चरण: चंद्र।
मूल नक्षत्र में जन्मे जातकों का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। शरीर हष्ट-पुष्ट, चमकीले नेत्र, मधुर स्वभाव। सामान्यतः इस नक्षत्र में जातक शांतिप्रिय, सिद्धांतवादी एवं विपरीत परिस्थितियों में भी पराजय न मानने वाले होते हैं। एक बार दृढ़ संकल्प कर लें तो वे उसे प्राप्त कर ही छोड़ते हैं। ईश्वर पर उनकी अगाध आस्था होती है, इतनी कि वे सब कुछ "प्रभु के भरोसे वाली उक्ति चरितार्थ करने लगते हैं। उन्हें न तो कल की चिंता होती है, न अपने वर्तमान की फ्रिक। वे दूसरों को अच्छी सलाह देते हैं, पर अपने मामले में लापरवाह ही होते हैं।
जहाँ तक आजीविका या कार्य का संबंध है, उनमें ईमानदारी होती है, साथ ही एक तरह की अस्थिर मति भी होती है। वे अनेक मामलों में कुशल भी होते हैं तथापि निरंतर परिवर्तनशील जीवन बिताने की चाह उन्हें कहीं टिकने नहीं देती। यों वे लेखन, कला, सामाजिक क्षेत्र में सफल सिद्ध होते ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 188
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