________________
मूल नक्षत्र में राहु की स्थिति के फल ___मूल नक्षत्र में केवल तीसरे चरण में ही राह के शुभ फल कहे गये हैं। शेष चरणों में अशुभ फल ही मिलते हैं।
प्रथम चरण: जातक संतान के कारण मानसिक विकार से ग्रस्त हो सकता है।
द्वितीय चरण: यहाँ भी अच्छे फल नहीं मिलते। जीवन दुखी ही रहता है।
तृतीय चरणः जातक वेदों का ज्ञाता एवं भू संपत्ति का स्वामी होता है।
चतुर्थ चरण: जातक निर्लज्ज प्रकृति का होता है। यों उसमें प्रशासन की क्षमता भी होती है।
मूल नक्षत्र में केतु की स्थिति के फल
मूल नक्षत्र में स्थित केतु भी कोई शुभ फल प्रदान नहीं करता। .
प्रथम चरणः अनुराधा नक्षत्र के लग्न में होने पर जातक को सुख- . सुविधापूर्ण जीवन के योग बताये गये हैं। लेकिन बाद में उसे अपनी संपत्ति गंवानी भी पड़ सकती है। यह स्थिति जीवन के इक्तीसवें वर्ष में बनती है तथापि तीन-चार वर्षों बाद जातक पुनः उसे प्राप्त कर लेता है।
द्वितीय चरणः यहाँ भी केतु उपरोक्त फल देता है। मंगल के साथ केतु की युति जातक को मंत्री या मंत्री तुल्य पद दिला सकती है।
तृतीय चरण: यहाँ भी उपरोक्त फल मिलते हैं।
चतुर्थ चरण: जातक तरक्की तो करता है पर उसका पारिवारिक जीवन दुखी रहता है।
ज्योतिष-कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 195
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org