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ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं सामान्यतः हष्ट पुष्ट, लंबी बाहों एवं धुंधराले केश वाली होती हैं ।
ऐसी जातिकाएं बुद्धिमान, विचारवान और कुशल संगठक होती हैं । उनमें गहरी अनुभूति होती है, फलतः वे गहनता से स्नेह भी करती हैं। अपनी छवि बनाये रखने के लिए वे सदैव सतर्क रहती हैं। वे अच्छी खासी शिक्षा पा सकती हैं। लेकिन वे अपनी शिक्षा का उपयोग अपने घर को चलाने में ज्यादा करती हैं। यह विडम्बना ही है कि उन्हें अपने ससुराल पक्ष के लोगों से त्रास ही अधिक मिलता है । वे उसे नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह की कहानियां भी गढ़ सकते हैं । ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओ को यह सलाह दी गयी है कि वे अपने संबंधियों एवं पड़ोसियों से वार्तालाप करते समय अत्यंत सावधानी बरतें। ऐसे लोग द्वेषवश उनके जीवन में विष भी घोल सकते हैं ।
पारिवारिक कलह के कारण वे अपने बच्चों पर भी ध्यान नहीं दे पातीं, जिसका बच्चों के मन पर विपरीत असर भी पड़ता है ।
ऐसी जातिकाओं को अपनी गर्भाशय संबंधी छोटी से छोटी तकलीफ की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ।
ज्येष्ठा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं: प्रथम चरण: गुरु, द्वितीय चरणः शनि, तृतीय चरणः शनि, चतुर्थ चरणः गुरु ।
ज्येष्ठा नक्षत्र में सूर्य के फल
ज्येष्ठा नक्षत्र में सूर्य की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती । और यदि इस नक्षत्र में स्थित सूर्य पाप ग्रहों से प्रभावित है तो वह पिता के लिए अशुभ बन जाता है।
प्रथम चरण: यहाँ सूर्य स्थित हो तो जातक को विष बाधा या अग्नि अथवा शस्त्र से आहत होने की आशंका बनी रहती है ।
द्वितीय चरणः जातक अधीर स्वभाव का होता है। वह दूसरों के प्रति सहानुभूति से शून्य भी होता है ।
तृतीय चरणः यहाँ सूर्य सामान्य फल देता है। यदि जातक का जन्म दिन में हुआ हो और सूर्य पर शनि की दृष्टि हो तो इसे जातक के पिता के लिए घातक माना गया है।
चतुर्थ चरण ः यहाँ भी सूर्य यदि अन्य पाप ग्रहों के साथ हो तो पिता के लिए घातक होता है ।
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ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 181
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