________________
सामान्यतः अनुराधा नक्षत्र में जन्मे जातकों का मुख सुंदर, नेत्र आभावान एवं व्यक्तित्व आकर्षक होता है।
ऐसे जातक ईश्वर पर अगाध आस्था रखने वाले होते हैं। यही आस्था उन्हें घोर से घोर विपत्तियों में भी निराशावादी नहीं बनने देती। ऐसे जातक के जीवन में बाधाएं भी बहुत आती हैं। उनसे वह अशांत-चित्त भी रहता है लेकिन निरंतर असफलताएं भी उसे अपने लक्ष्य से नहीं डिगा पातीं। वह कठोर परिश्रमी होता है। यह सब संभवतः शनि के प्रभाव के कारण होता है। अनुराधा नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि को ही माना गया है।
अनुराधा नक्षत्र में जातक नवयुवावस्था में ही कर्म क्षेत्र में उतर जाते हैं। अर्थात् 17 से 18 वर्ष की अवस्था में वे आजीविका कमाने लगते हैं। इसमें उन्हें कई अवरोधों का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन चालीस वर्ष के बाद उनका जीवन सुखपूर्वक बीतने लगता है। ऐसे जातक व्यवसाय के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। यदि अनुराधा नक्षत्र में चंद्रमा के साथ मंगल की युति हो तो जातक चिकित्सक भी बन सकते हैं अन्यथा औषध-व्यवसाय से संबंधित होते हैं।
पारिवारिक जीवन में भी दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता। पिता के साथ-साथ माता से भी उन्हें पर्याप्त स्नेह नहीं मिल पाता। हाँ, उसका वैवाहिक जीवन सुयोग्य एवं दक्ष पत्नी के कारण सुखी रहता है। ऐसे जातक अपनी संतानों को उन सब कष्टों एवं बाधाओं से बचाना चाहते हैं; जिन्हें उन्होंने अपने जीवन में भुगता है। वह हर कीमत पर अपने बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान देते हैं ताकि वे सुयोग्य बन सकें
और ऐसे जातकों की संतानें भी उन्हें निराश नहीं करतीं। पिता के मार्गदर्शन के फलस्वरूप वे जीवन में तरक्की करते हैं; पिता की हैसियत से भी आगे निकल जाते हैं।
सामान्यतः ऐसे जातकों का स्वास्थ्य ठीक ही रहता है। तथापि उन्हें अस्थमा, दंत पीड़ा, कफ, जुकाम, कब्ज आदि की शिकायत शीघ्र हो सकती है, अतः इन स्थितियों से बचना चाहिए, जिनसे उपरोक्त विकारों के पैदा होने की आशंका प्रबल हो। ___ अनुराधा नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं के चेहरे और व्यवहार में एक निर्दोष भाव झलकता है। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है।
ऐसी जातिकाएं विनम्र, बड़ों के प्रति आदर मान से युक्त, शुद्ध हृदय, अपने व्यवहार से सबको प्रसन्न करने वाली तथा हठी स्वभाव से युक्त होती हैं। उनके मन में निस्वार्थ भावना होती है। वे अपने किसी भी कार्य या सेवा
ज्योतिष कौमुदी : (खंड-1) नक्षत्र-विचार - 171
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org