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तृतीय चरणः यहाँ चंद्र जातक को धार्मिक आस्थावान, स्वाभिमानी और शत्रुहंता बनाता है।
चतुर्थ चरण: यहाँ चंद्र युवावस्था तक जातक का जीवन संघर्षमय बनाता है। इसके पश्चात् जातक बाहुबल से धन, यश, कीर्ति अर्जित करता है । जातक विदेश में भी बस सकता है।
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विशाखा स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि कृषि कर्म में प्रेरित करती है । वह साहूकारी भी कर सकता है।
मंगल की दृष्टि स्त्रियों में प्रिय बनाती है।
बुध की दृष्टि उसे विद्वान और गणितज्ञ बना देती है।
गुरु की दृष्टि पत्नी के लिए अशुभ होती है।
शुक्र की दृष्टि के फलस्वरूप जीवन में सभी सुख मिलते हैं । वैवाहिक जीवन भी सुखी होता है ।
शनि की दृष्टि स्त्रियों से विरक्त ही नहीं बनाती, उनके प्रति घृणा का भाव भी भरती है ।
विशाखा के विभिन्न चरणों में मंगल
प्रथम चरणः यहाँ मंगल विशेष शुभ फल नहीं देता। आय से व्यय अधिक होता है, अतः सदैव अभाव की स्थिति रहती है ।
द्वितीय चरणः यहाँ भी मंगल शुभ फल नहीं देता । सूर्य-मंगल की युति जातक को मिथ्याभाषी, पाप कर्मरत बना देती है। चंद्र के साथ मंगल का योग रक्त विकार उत्पन्न करता है।
तृतीय चरणः जातक के व्यक्तित्व का लाभ दूसरे लोग उठाते हैं और एवज में मिलती है उपेक्षा । शिक्षा में भी व्यवधान आते हैं।
चतुर्थ चरण: यहाँ भी मंगल शिक्षा में व्यवधान उपस्थित करता है ।
विशाखा स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि
सूर्य की दृष्टि वैवाहिक जीवन दुखी रखती है। जातक पत्नी से प्यार नहीं करता ।
चंद्र की दृष्टि उसे मातृभक्त बनाती है।
बुध की दृष्टि शुभ होती है। जातक की संतान बुद्धिमान होती है। गुरु की दृष्टि से जातक परिवार के दायित्वों को भली भांति निभाता है।
ज्योतिष- कौमुदी : (खंड- 1 ) नक्षत्र विचार 166
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