Book Title: Jambuswami Charitam
Author(s): Ratnaprabhsuri, Hemsagarsuri
Publisher: Dhanjibhai D Zaveri

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जम्बूचरित्रे ॥ ४ ॥ KAI www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेइयहरसम्मज्जण-धवलीकरणाइवावडा निच्चं । सावयवयाई भावइ, तवइ सुतिव्वं तवोकम्मं ॥ ४४ ॥ सुविहियसाहुसमीवे, उबएस रसायणं सया पियइ । वंदणपडिकमणा पञ्चखाणपमुद्देसु उज्जमइ ॥ ४५ ॥ भव-पेच्छामि ताव अच्छीहिं, श्राविका तीए किं पिच्छियाए असुईए। अहब मए दिट्ठाए, सा दिट्ठा चेव किं बहुणा ॥ ४६ ॥ सास साईं, दोण्हवि न भिन्नओ अप्पा । भवता पभणसु किं तुममेव, साविगे ! नागिला होसि ॥ ४७ ॥ श्राविका — आमं अहं चिय सा नागिल त्ति पारूढपोढबंभवया । वसमंसपुरीसाईणपूरिया उल्लखल्ल व्व ॥ ४८ ॥ नियगुरुणीए कहियं, कहाणयं तुह कद्देमि किंपि अहं । होऊण सावहाणो, अवहारसु साहु साहुखणं ॥ ४९ ॥ किर कोइ जिइंदिओ दिओ सज्जो मयभज्जो डहरगं दारगं गहाय तत्तओ नगरु (ग्राम) ग्गओ निम्गओ घराओ । सो य मोक्खसोक्त्रमार्कखमाणसो साहुसमीवे सम्मं धम्मं निसम्म स (म)म्मविक संजायसम्मइओ पब्बइओ, पालेइ चक्कवालसमायारिं, करेइ किरियाओ कक्खडाजो | सो पुण से दारगो सीयभोयणऽरसविरसपाणगाणुवाहण-कक्खडसेज्जा- सिणाणाईसु सीयमाणो, खंत! न सक्केमि सीयभोयणं भोक्तुं खंत ! न सक्केमि अरसविरसाणि पाणगाणि पाउं, इच्चाई जंपमाणो खंतेण कंचि कालं वट्टाविओ जयणाए । अन्नया भणाइ खंत ! विसमसरपसरजज्जरसरीरोऽहं न सक्केमि अविरइयाए विणा मणापि पाणे धारिडंति । तओ परिचत्तो । अलं मे असंजयजीव पडिजग्गणेण । यत उक्तम् - " न वि किंचि अणुन्नायं, पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहिं । मो मेहुणभावं, न तं विणा रागदोसेहिं ॥ ५० ॥ " तओ गओ सो सहवासीणं सुमरिऊणं । एगस्स माद्दणस्स गेहे लग्गो कम्मगरवित्तीए, केणइ काण दिन्ना से दारिगा । विवाहकाले य पडियधाडीए निणियं मिहुणगंपि । सो भोगपिवासिओ अट्टज्झाणमाण कालगओ महिसो जाओ । सो वि से पियासाहू पंडियमरणेण मओ समाणो देवलोगे देवो जाओ । ओहिणा आभोएइ पुत्तं महिसरुवेण संजाये । देवमायाए कालविकरालथूलमहाकाएण सोगरिएणेगेण किणेऊण कओ सो अइभारारोविओ गि For Private And Personal Use Only महिषीभूतपुत्रप्रति बोधः । ॥ ४ ॥

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