Book Title: Jain Vidya 25 Author(s): Kamalchand Sogani & Others Publisher: Jain Vidya Samsthan View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय जैनविद्या संस्थान की शोध-पत्रिका 'जैनविद्या' का यह अंक 'आचार्य शिवार्य विशेषांक' के रूप में प्रकाशित कर अत्यन्त प्रसन्नता है। 'आचार्य शिवार्य' 'आचार्य शिवकोटि' नाम से भी प्रसिद्ध रहे हैं। इनकी एक ही रचना उपलब्ध है - 'भगवती आराधना'। इसे 'मूलाराधना' भी कहा जाता है। यह प्राकृत भाषा में रचित एक आचारपरक ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल ईसा की द्वितीय'तृतीय शताब्दी माना जाता है। . आचार्य शिवार्य ने अपने इस ग्रन्थ में मनुष्य-जन्म की दुर्लभता बताते हुए उसे सार्थक करने के लिए विषय-भोगों के त्यागपूर्वक धर्म-ध्यान की साधना व आराधना युक्त जीवन व्यतीत करते हुए अन्त में सल्लेखना व समाधिपूर्वक मरण की आवश्यकता पर बल दिया है। ‘आराधना' पर ऐसी सांगोपांग रचना दूसरी नहीं है, इसलिए यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व लोकप्रिय रहा है। जिन विद्वान लेखकों ने अपने लेखों द्वारा इस अंक के कलेवर-निर्माण में सहयोग प्रदान किया उन सब के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। पत्रिका के सम्पादक, सम्पादक मण्डल के सदस्य, सहयोगी सम्पादक - सभी धन्यवादाह हैं। प्रकाशचन्द्र जैन मंत्री जस्टिस नगेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी (v)Page Navigation
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