Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 15
________________ १६-१६ संस्कारों का विधिपूर्वक विशुद्ध विवेचन है । आज जनसामान्य के अध्ययनार्थ, ज्ञानार्थ एवं संस्कारों की क्रियान्विति हेतु इस ग्रन्थ के श्लोकों के हिन्दी रूपान्तरण की महती आवश्यकता थी । जिसे जैन कोकिला, व्याख्यान भारती, समतामूर्ति परमपूज्या गुरुवर्या श्री प्रवर्तिनी स्व. श्री विचक्षण श्री जी म.सा. की सुयोग्यसुशिष्या साध्वीजी श्री हर्षयशा श्री जी म.सा. की सुशिष्या विदुषी साध्वीजी श्री मोक्षरत्ना श्री जी ने पूर्ण किया है। इस पुनीत कार्य को अपने समक्ष देखकर मैं अन्तर्मन के उद्गार एवं प्रसन्नता को अक्षरशः प्रकट भी नहीं कर पा रही हूँ । मोक्ष मार्ग के सोपान की ओर अग्रसर करने वाले मुनि धर्म से सम्बद्ध १६ संस्कार यथा - ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण, क्षुल्लक दीक्षाविधि, प्रव्रज्या विधि, उपस्थापना विधि, योगोद्ववहन विधि, वाचना ग्रहण विधि, अन्तिम संलेखन विधि आदि संस्कारों के विधि-विधानों के हिन्दी रूपान्तरण से सम्बद्ध यह ग्रन्थ सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगा । साध्वी श्री मोक्षरत्ना जी का यह भगीरथ प्रयास स्तुत्य एवं अनुमोदनीय है । एतदर्थ उनको साधुवाद। वह जिनशासन की निष्काम भाव से सेवा करते हुए श्रेष्ठ साधुचर्या के साथ वीणापाणि माँ सरस्वती के चरण कमलों की उपासिका बनी रहे, अन्तःस्थ के इन्हीं शुभ भावों के साथ । Jain Education International For Private & Personal Use Only शुभाशीर्वाद सह विचक्षण ज्योति चन्द्रप्रभा श्री www.jainelibrary.org

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