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!! आशीर्वाद की अक्षुण्ण धारा !!
इस जगत में अनेक भव्य आत्माए जिनेश्वर देव के शासन में जन्म लेकर उच्चतम साधना बल से स्वस्वरूप को प्राप्त करती हैं। यह पूर्व संस्कारों का परिणाम है, जिससे उन्हें सद्गुरु समागम अनुकूल सामग्री व सत्शास्त्र - अध्ययन का सुसंयोग मिलता है ।
संस्कारवान् व्यक्ति कभी भी किसी प्रकार का अनुचित कदम नहीं उठाता, कदाचित् संकटकाल में संक्लेशवश गलत कार्य में उद्यत हो जाए, परन्तु पाप भीरू होने से अथवा अपने उत्तम कुल व जाति का विचार आने पर पूर्व संस्कारों के कारण अनुचित कार्यों से विरत हो जाता है । वास्तव में सुसंस्कार जन्म-जन्मान्तर की जगमगाती ज्योति है । पूर्ववर्ती आचार्यों एवं 'आचारदिनकर' के रचयिता वर्धमानसूर का हम पर अनंत उपकार है, जो हमें कुसंस्कारों से बचाया है और सुसंस्कारों का मार्ग दिखाया। प्रस्तुत ग्रन्थ में गृहस्थ एवं मुनिजीवन के संस्कारों का स्वरूप दर्शाया गया है, इस प्रकार यह मानवीय संस्कारों का एक संरक्षक ग्रंथ है।
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ख्यातिलब्ध डॉ. सागरमल जी के पावन निर्देशन में साध्वी श्री. मोक्षरत्ना श्री जी ने अपने भागीरथ प्रयास से विशालकाय ग्रंथ 'आचारदिनकर' का हिन्दी अनुवाद किया है । सुसंस्कारों का यह ग्रंथ साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविकाओं की साधना में अति उपयोगी है।
शासन देव एवं गुरुदेव से प्रार्थना है कि साध्वी श्री का ज्ञान वैभव उच्च शिखर पर पहुँचकर जिनशासन एवं गच्छ को अलंकृत करे । गुरुवर्याओं के आशीर्वाद की अक्षुण्ण धारा उन्हे सिंचित करती रहे
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गुरु विचक्षण विनेया - विनीता श्री
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