Book Title: Jain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 11
________________ परिश्रमशीलता आदि के माध्यम से ही ऐसे विशालकाय ग्रंथ का अनुवाद करना संभव हो सकता हैं। __ तार्किक मनीषी, प्रज्ञापुरुष डॉ. सागरमलजी के दिशा-निर्देश में साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी ने इस ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद कर वास्तव में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया हैं। निश्चित रूप से श्रुतोपासिका साध्वीवर्या मोक्षरत्ना श्रीजी का यह प्रयत्न स्तुत्य एवं अनुमोदनीय हैं। आपका यह प्रयत्न रत्नत्रय की साधना को परम विशुद्ध बनाए एवं जन हितार्थ बने ऐसी शुभ भावना नागपुर, २१ फरवरी २००६ जिनमहोदयसागरसूरि चरणरज मुनि पीयूषसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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