Book Title: Jain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Author(s): Kumud Giri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ पूर्वपीठिका : ७ आइकनोग्राफी-१९०५-०९), आर० पी० चन्दा ( जैन रीमेन्स ऐट राजगीर, १९२५-२६ ), एच० एम० जॉनसन ( श्वेताम्बर जैन आइकनोग्राफी), टो० एन० रामचन्द्रन (तिस्परुतिकुणरम ऐण्ड इट्स टेम्पुल्स१९२४, जैन मान्यमेण्ट्स ऐण्ड प्लेसेज ऑव फर्स्ट क्लास इम्पार्टन्स१९४४ ), बी० सी० भट्टाचार्य (जैन आइकनोग्राफी, १९३९ ), एच० डी० सांकलिया ( जैन आइकनोग्राफी-१९३९-४०, जैन यक्षज ऐण्ड यक्षिणीज, जैन मान्युमेण्ट्स फ्राम देवगढ़-१९४१ ), के० डी० बाजपेयी, आर० सी० अग्रवाल, देबला मित्रा ( शासनदेवीज़ इन खण्डगिरि केव्स), वी० एस० अग्रवाल ( केटलाग ऑव दि मथुरा म्युजियम, मथुरा, आयागपटज़, ए नोट ऑन दि गॉड नैगमेषी-१९४७), क्लाजब्रन (दि जिन इमेजेज ऑव देवगढ़-१९६९), बालचन्द्र जैन ( जैन प्रतिमाविज्ञान१९७४ ), आर० एस० गुप्ते एवं बी० डी० महाजन ( अजन्ता, एलोरा ऐण्ड औरंगाबाद केव्स-१९६२, आइकनोग्राफी ऑव दि हिन्दूज बुद्धिस्ट ऐण्ड दि जैन्स-१९७२) तथा बी० एन० शर्मा ( जैन प्रतिमाएँ-१९७९) आदि के कार्य उल्लेखनीय हैं। जैन कला के विभिन्न पक्षों पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य यू० पी० शाह और मारुतिनन्दन तिवारी ने किये हैं। शाह ने कई पुस्तकों ( स्टडीज़ इन जैन आर्ट-१९५५; अकोटा ब्रोन्जेज़-१९५९; जैन रूपमण्डन१९८७ ) के अतिरिक्त १६ महाविद्याओं, जैन यक्षी चक्रेश्वरी, पद्मावती तथा बाहुबली, सरस्वती, अम्बिका, नैगमेषी, उपदेवताओं, ब्रह्मशान्ति यक्ष आदि पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लेख भी प्रकाशित किये हैं। इसी प्रकार मारुतिनन्दन तिवारी ने भी चार पुस्तकों ( जैन प्रतिमाविज्ञान-१९८१; एलिमेण्ट्स ऑव जैन आइकनोग्राफी-१९८३; खजुराहो का जैन पुरातत्व१९८७; अम्बिका इन जैन आर्ट एण्ड लिटरेचर-१९८९ ) के अतिरिक्त खजुराहो, देवगढ़, एलोरा, कुम्भारिया, देलवाड़ा, मथरा, राजगिर आदि स्थलों की जिन, यक्ष-यक्षी, महाविद्या, बाहुबली, सरस्वती, भरत चक्रवर्ती, अष्ट-दिक्पाल, ब्रह्मशान्ति यक्ष एवं वैष्णव मूर्तियों पर कई महत्त्वपूर्ण लेख लिखे हैं। इन दोनों विद्वानों ने साहित्यिक एवं प्रतिमाशास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर विभिन्न देवस्वरूपों के विकास को निरूपित किया है और विभिन्न पुरास्थलों की सामग्री से उनकी यथेष्ट विवेचनात्मक तुलना भी की है। इस प्रकार उनके कार्यों में जैन देव मूर्तियों का विकास ऐतिहासिक दृष्टि से प्रस्तुत हुआ है। डब्ल्यू नार्मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 ... 334