Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 11
________________ स्वत जैन कथामाला के क्रम में जब अष्टम बलदेव मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं अष्टम वासुदेव श्री लक्ष्मण तथा महासती सीता को वर्णन प्रारम्भ हुआ तो मन में एक संकल्प उठा कि-मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, जो भारतीय संस्कृति के महान व्यक्तित्व माने जाते हैं, जो मानव से भगवान 'वने, और नीति, मर्यादा, सदाचार आदि के अपूर्व आदर्श गुणों से मण्डित थे उनका समग्र जीवन वत्त ही लिख लिया जाय तो अधिक उपयोगी होगा। एक प्रकार से समग्र जैन रामायण पाठकों के हाथों में पहुंच जायेगी। - हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिषप्टिशलाकापुरुष चरित्र के आधार पर राम-कथा का आलेखन प्रारम्भ हुआ। स्थान-स्थान पर ऐसे प्रसंग आये, जिन पर प्रचलित राम-कथा (हिन्दू रामायण) के अनुसार कुछ कथान्तर व मतभेद भी था। उसके लिए वाल्मीकि रामायण' एवं 'तुलसीकृत रामचरितमानस 'का' पारायण किया गया, अन्य प्राचीन रामायणें भी देखीं और जहाँ-जहाँ : विशेष अन्तर प्रतीत हुआ वह चालू प्रसंग में ही नीचे 'फुटनोट के रूप में दे दिया गया, ताकि पाठक जैन एवं हिन्दू रामायण को तुलना करता हुआ पढ़ता जाय, जहाँ भी शिक्षाप्रद आदर्श मिले उसे लेता जाय-हंसवुद्धि के साथ। ।' यह स्पष्ट बात है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम'को ‘महान व्यक्तित्व समग्र भारतीय लोक जीवन में आदर्श माना गया है । अपार लोके श्रद्धा ने उन्हें भगवान के रूप में भी स्वीकार कर लिया है। यह भ्रान्ति भी निराधार है: कि जनों ने राम को भगवान नहीं माना। जैन दृष्टि से..प्रत्येक मनुष्य प्रारम्भ में मनुष्य ही होता है, चाहे वे तीर्थंकर ऋपभदेव रहे हों, तीर्थंकर पार्श्वनाथ

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