Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 10
________________ बहुश्रुत मनीपी उपाध्याय श्री मधुकर मुनिजी महाराज ने अपने व्यापक अध्ययन एवं तटस्य चिन्तन के आधार पर जैन रामायण की बहुत ही संतुलित शैली में प्रस्तुत किया है । साथ ही वाल्मीकि रामायण एवं तुलमी रामायण आदि के कथाभेद को भी पाठकों की जानकारी एवं तुलनात्मक दृष्टि के लिए प्रस्तुत किया है । ऐसी सन्तुलित टिस्य तथा व्यापक रामायण पाठकों के लिए बहुत ही रुचिकर तथा ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी। सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना का सुन्दर श्रमपूर्ण सम्पादन, मुद्रण आदि तो हमारी कथामाला एवं अन्य साहित्य का मुख्य आधार है अतः हम उनके इस सहयोग के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। सुविस्तृत राम-कया को अलग-अलग भागों में प्रकाशित करने से कयामाला के पांच भाग बनते । इससे रामायण का रूप कुछ अस्त-व्यस्त सा रहता, अतः पांचों भागों की एक ही जिल्द बनाई गई है। इससे अध्ययन में पाठकों को विशेष सुविधा रहेगी; ऐसी आशा है। इस प्रकाशन में अर्थ सहयोग प्रदान करने वाले सज्जनों का हम हार्दिक आभार मानते हैं। --मन्त्री अमरचन्द मोदी

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