Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 7
________________ काव्यको अपनाने में एक है ।" एक और कवि कह उठा-" ब्राह्मण वेदोंको इसलिए कण्ठान रखते हैं कि लिखनेसे उनका मोल कम हो जायगा । किन्तु मुप्पाल तालपत्र पर लिखे जाने पर और सबके द्वारा पढ़े जाने पर भी मानमें कम न होगा।" . संघमें एक ' चथन ' नामका कवि भी था । यह अपनी लोहलेखनी मत्थेकी ओर उठाये हुए बैठा रहता था । ज्यों ही कोई बुरा और अशुद्ध पद्य पढ़ा जाता था कि वह कलमसे अपना मत्था ठोंकता था। परन्तु जब कुरल काव्य पढ़ा गया, तब उसने एक बार भी अपनी लोह-लेखनी मत्थेसे न लगाई ! इसे देख एक वैद्य सभ्यने कहा कि "मुप्पाल काव्यने हमारे मित्र चथन कविकी शिरःपीडा अच्छी कर दी !" ____ जो विद्वान् तामिल भाषा जानते हैं वे कहते हैं कि कुरल काव्योंका राजा है । उसमें छन्द, भाषा और प्रसादगुणसम्बन्धी कोई भी दोष नाम मात्रको नहीं है । इसीलिए उस सभा पाण्ड्यनरेश उग्रराजने कहा था कि "स्वयं ब्रह्माने विल्लुवरका रूप धारण करके मुप्पाल काव्यकी रचना की है।" कुरलकाव्यके तीन विभाग हैं-धर्म, अर्थ और काम । काव्यकी सारी उक्तियाँ चुटीले दोहोंमें है । ( टी. पी. कुप्पूस्वामी शास्त्री, एम. ए. के लेखानुसार इसमें १३३ अध्याय हैं और प्रत्येक अध्यायमें बीस बीस दोहे हैं। सब मिलाकर २६६० छन्द हैं। ) कवि वल्लुवरका धर्म जैन था; परन्तु उसकी उक्तियाँ कहे देती हैं कि उसके धार्मिक विचार बहुत उदार थे । उसकी उक्तियोंका परिचय लीजिए:१- " दान लेना बुरा है, चाहे उससे दीनता भले ही दूर हो जाय ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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