Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 24
________________ वह (विचार) धीरे धीरे मस्तकके उस भागमें पहुँच जायगा कि जहाँ वह अंतमें कार्यका रूप अवश्य धारण कर लेगा; अर्थात् जहाँ पहुँच. कर वह शरीरको अपने अनुसार कार्य करनेके लिए बाधित कर देगा। अब यदि वह विचार अच्छा है तो उसका फल भी अच्छा होगा और यदि वह विचार बुरा है तो उसका परिणाम भी बुरा होगा। हत्या, वध आदि जितने भी बुरे कर्म हैं सब इसी तरह होते हैं और . इनके विपरीत जितने उत्तम कार्य हैं, वे भी इसी तरह होते हैं। ___ समझने और याद रखनेकी बात है कि प्रत्येक कार्यका कारण विचार है; परन्तु किसी प्रकारके विचारको मनमें रखने या न रखनेका हमें पूर्ण अधिकार है। हम अपने मनके स्वतंत्र राजा हैं। पूर्णरूपसे वह हमारे वशमें है और हमको सदैव उसे अपने वशमें रखना चाहिए। यदि कभी वह वशमें न रहे, तो उसके वशमें करनेका एक उपाय है । उसके अनुसार चलनेसे हम मन और विचार दोनोंको अपने अधिकारमें कर सकते हैं। ___ मनुष्यके शरीरमें यह गुण है कि उसमें किसी कामको बार बार करनेसे उस कामके करनेकी शक्ति बढ़ती जाती है । पहली बार किसी कामके करनेमें जितनी कठिनाई होती है उससे कहीं कम उसी कामको दूसरी बार करनेमें होती है और उससे भी कहीं कम तीसरी बार करनेमें और तीसरी बारसे भी कम चौथी बारके करनेमें होती है । गरज यह कि हर बार कठिनाई कम होती जायगी और आसानी अधिक मालूम होती जायगी। धीरे धीरे एक दिन वह काम बिलकुल आसान हो जायगा और उसमें जरा भी कठिनाई न रहेगी। परन्तु हाँ, उससे उल्टा करनेमें बड़ी कठिनाई मालूम होगी । ठीक यही हालत मस्तककी भी है। एक विचार पहली बार जरा कठिनाईसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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