Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 44
________________ हुआ है। परन्तु वे ग्रंथ-जिनका ध्यान उनको उल्लेख करनेके. समय था-बहुत कालसे खो गये हैं और हमको यह भी न मालूम होता कि वे कैसे थे, यदि जैन लेखकों द्वारा लिखे हुए वैसे ही कुछ प्राकृत ग्रंथ इस समय मौजूद न होते । इन ग्रन्थोंमेंसे सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण हरिभद्रकृत समरादित्यकथा है, जिसको हेमचंद्रने सकल कथाका आदर्श लिखा है । यह ग्रन्थ नवीं शताब्दिमें, एक हजारसे भी अधिक वर्ष हुए, लिखा गया था। इसमें प्रेम-कथायें, स्थल और जल पर साहसके कृत्य, दरबारोंके झगडे, लडाइयाँ इत्यादि भारतीय जीवनके मध्यकालके नाना प्राकरके दृश्य दिये हैं। इसमें सन्देह नहीं किया जा सकता कि इन्हीं विषयोंकी. सामग्रीसे प्राकृतकी आख्यायिकायें, जो एक समय शिक्षित समाजको आनंददायक थीं-लिखी गई थीं। इसका क्या कारण है कि प्राकृतमें लिखे हुए कथाओंके ग्रन्थ-जो एक समय बहुलतासे थे-लुप्त हो गये हैं ? यह स्पष्ट है कि प्राकृतसाहित्यका ज्ञान-जो किसी समय लोगोंकी भाषाका सुशील रूप था और इस लिए सुगमतासे उनकी समझमें आजाता था-समयके व्यतीत होनेसे और सर्वप्रिय भाषाके बदलनेसे, सर्वप्रिय भाषासे ऐसा भिन्न हो गया कि प्राचीन भाषामें लिखे हुए ग्रन्थोंके समझनेके लिए विधिपूर्वक अध्ययनकी जरूरत हो गई । इस प्रकार सर्वसाधारणकी दृष्टिमें जो विद्वत्ताकी भाषा पर प्राचीन भाषाकी उत्तमता थी वह जाती रही और प्राकृत ग्रंथोंके पढनेवाले सिवाय जैन विद्वानोंके, जो प्राकृतका आदर संस्कृतके बराबर करते थे, कहीं न मिले। और इस तरह यह हुआ कि अधिक सर्वप्रिय प्राकृत भाषाकी झलकोंके लिए हम जैनोंके ऋणी हैं। परन्तु यदि मैं इस विषयको अधिक व्योरेवार कहूँ तो मेरे श्रोताओंके धैर्य पर अधिक भार पड़ेगा । मैं खयाल करता हूँ कि मैं यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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