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खण्डन किया है। लेखकका अनुमान है कि ईस्वीसन्के ५००-६०० वर्षपूर्वसे शुद्ध संस्कृत भाषाका ह्रास होना शुरू हुआ और होते होते ईस्वीसन्के प्रारंभमें प्राकृत भाषाका उदय हुआ। इसके पहले संस्कृतका जोरोशोर था । पाणिनिका समय ईस्वी सन्से १०००८०० वर्ष पहले माना जाना है। इत्यादि। यह लेख संस्कृतज्ञ विद्वानोंके पढ़ने योग्य है।
आर्यसमाजकृत मेघजातिकी शुद्धि और जैनसमाज।
आर्यसमाजके सिद्धान्त चाहे जैसे हों और उसके सुधारके ढंग चाहे जैसे हों, परंतु इसमें सन्देह नहीं कि उसमें उद्योगी साहसी और कर्मवीर पुरुषोंकी संख्या अच्छी है । उसमें केवल बातौनी जमाखर्च करनेवाले ही नहीं हैं- काम करनेवाले भी हैं। स्यालकोट, गुरुदासपुर, जम्बू और काश्मीरके कितने ही शहरोंमें मेघ नामकी एक जाति है । इसकी जनसंख्या गत मनुष्यगणनाके अनुसार लगभग १ लाख १५ हजार है। ये लोग साधारणतः गौर वर्णके हैं। उनके आचार-विचार रहन-सहन के भीतर श्रेष्ठ हिंदूपनके लक्षण मिलते हैं । किसी समय वे समाजके ऊँचे दर्जे पर प्रतिष्ठित रह चुके है। इस समय भी उनमें कोई गंदा धंधा करनेवाले नहीं हैं। बढ़ई, दर्जी आदिके काम करके वे अपनी जीविका निर्वाह करते हैं। कोई कोई लोग नौकरी भी करते हैं । इन लोगोंके प्रति हिन्दुओंका व्यवहार बहुत ही बुरा है । ये लोग हिन्दुओंके ग्रामोंमें या मुहल्लोंमें निवास नहीं कर सकते,कुएको स्पर्श नहीं कर सकते,पानी पीनेके लिए दूसरोंकी कृपाकी इन्हें सदा अपेक्षा रहती है । राजमार्गों परसे वे स्वाधीनतापूर्वक नहीं चल सकते । कोई 'पवित्र' हिन्दू उनके स्पर्शसे अपवित्र न हो जाय, इसकारण उन्हें पुकार कर सावधान करते हुए चलना पड़ता है। हिन्दुओंके देवता उन्हें अपने द्वारके पास तक भी
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