Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 46
________________ खानेवाला है, यदि ऋग्वेद याद हो, तो उसे कोई पाप नहीं लग सकता!" महाभारतके शान्तिपर्वमें कहा है-“वेद शब्दसे सर्वभूतोंके रूपनाम कर्मादिकी उत्पत्ति हुई है।" ऋक्संहिता और तैत्तिरीयसंहिताके मंगलाचरणमें सायनाचार्य और माधवाचार्यने लिखा है-" वेदसे अखिल जगत्का निर्माण हुआ है।" इस तरह सर्वत्र ही वेदका माहात्म्य बतलाया है। किसी देशमें किसी भी धर्मग्रन्थकी ऐसी महिमा नहीं गाई गई। अब प्रश्न यह है कि जो वेद इस तरह सबका पूर्वगामी और उत्पत्तिका मूल है, वह आया कहाँसे ? इस विषयमें जुदा जुदा लोगोंके जुदा जुदा मत हैं। कोई कोई कहते हैं कि वेदका का कोई भी नहीं है-यह ग्रन्थ किसीका भी बनाया हुआ नहीं है; यह नित्य और अपौरुषेय है । दूसरे कहते हैं कि यह ईश्वरप्रणीत है, इस लिए सृष्ट और पौरुषेय है । हिन्दूशास्त्रोंकी यह कैसी आश्चर्यकारिणी विचित्रता है कि वेदोंको तो वे सब ही मानते हैं, परन्तु वेदोंकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें उनमेंसे किसी दो ग्रन्थोंकी भी एकता नहीं दिखलाई देती। ___ऋग्वेदके पुरुषसूक्तमें लिखा है कि वेदपुरुष यज्ञसे उत्पन्न हुआ। अथर्ववेदमें एक जगह कहा है कि ऋक-यजुः-साम स्तम्भसे उत्पन्न हुए हैं। दूसरी जगह कहा है कि वेदोंका जन्म इन्द्रसे हुआ है। तीसरी जगह कहा है कि ऋग्वेद कालसे उत्पन्न हुआ है । शतपथ ब्राह्मणमें कहा है कि अग्निसे ऋक्, वायुसे यजुष्, और सूर्यसे सामवेदकी उत्पत्ति हुई है। इसी प्रन्थमें अन्यत्र लिखा है कि प्रजापतिने वेदसहित जलमें प्रवेश किया। जलसे अण्डा और अण्डेसे पहले तीन वेद उत्पन्न हुए । एक जगह और लिखा है कि वेद महाभूत (ब्रह्मा ) का निश्वास है। तैत्तिरीय ब्राह्मणमें कहा है कि वेद प्रजापतिके स्मश्रु हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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