Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ ६२१ विष्णुपुराणमें कहा है कि वेद ब्रह्माके मुखसे उत्पन्न हुए । महाभारतके भीष्मपर्वमें है कि सरस्वती और वेद विष्णुने मनसे सृजन किये । इत्यादि। - देखा जाता है कि इन सब ग्रन्थोंमें वेदोंका सृष्टत्व और पौरुषेयत्व प्रायः सर्वत्र ही स्वीकृत हुआ है-अपौरुषेयत्व कदाचित् ही कहीं बतलाया गया है। परन्तु पीछेके प्रायः सब ही टीकाकार और दार्शनिक विद्वान् अपौरुषेयत्ववादी हैं। उन लोगोंके मत ये हैं:__सायनाचार्यने ऋग्वेदकी टीकामें कहा है कि “वेद अपौरुषेय है। क्योंकि उसे किसी मनुष्यने नहीं बनाया ।” माधवाचार्य तैत्तिरीय यजुर्वेदकी टीकामें कहते हैं कि "जिस तरह काल आकाशादि नित्य हैं उसी तरह वेद भी नित्य है ।" ब्रह्माको उन्होंने वेदवक्ता स्वीकार किया है। मीमांसक कहते हैं कि “ वेद नित्य ओर अपौरुषेय है। शब्द नित्य है इस लिए वेद भी नित्य है ।" शंकराचार्य भी इसी मतको मानते हैं । नैयायिक इसका प्रतिवाद करते हैं और कहते हैं" मन्त्र और आयुर्वेदके समान, ज्ञानी व्यक्तिके वचन प्रामाण्य होते हैं, इसी लिए वेदोंकी भी प्रमाणता माननी चाहिए।" वैशेषिकोंका मत है कि वेद ईश्वरप्रणीत है । कुसुमांजलि-कर्ता उदयनाचार्यका भी यही मत है। इन सब शास्त्रोंकी आलोचना करनेसे जान पड़ता है कि कोई वेदको नित्य और अपौरुषेय कहते हैं और कोई सृष्ट तथा ईश्वरप्रणीत बतलाते हैं। इन दोको छोड़कर और तीसरा सिद्धान्त नहीं हो सकता। परन्तु सांख्यप्रवचनकारका मत सबसे निराला है। मुरारेस्तृतीयः पन्थः । वे पहले कहते हैं कि वेद कदापि नित्य नहीं हो सकता। स्वयं वेदमें ही उसके कार्यत्वका प्रमाण मौजूद है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66