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और प्रफुल्लता सदाके लिए बिदा ले जायगी और हर एकके साथ उसका चिडचिडानेका व्यवहार हो जायगा । परन्तु यदि वह जिस समय क्रोध आवे उसी समय उसे दबा दे और अपने मनको किसी और विषयकी तरफ़ लगा दे तो उसे प्रथम तो क्रोध आ ही नहीं सकता
और यदि आयगा भी, तो शीघ्र ठंडा पड़ जायगा । यदि फिर कभी क्रोध आयगा और वह उसे शांत करनेका प्रयत्र करेगा तो उसको पहलेसे ज्यादह आसानी होगी । इस तरह थोड़े दिनोंमें ही उसका क्रोध छूट जायगा। तब न कोई बात उसे भड़का सकेगी
और न किसी भी बातसे उसे क्रोध आयगा । इसके विपरीत उसकी तबियतमें क्षमा, शांति, दया और प्रेम पैदा हो जायँगे जिनका आज वह विचार भी नहीं कर सकता।। ___ इसी प्रकार उदाहरण पर उदाहरण लिये जाओ । एक एक आदत, एक एक स्वभावको देखो । हर जगह इसी उपायको उपयोगी पाओगे । दूसरोंकी बुराई करना, उनके अवगुण देखना, ईर्ष्या, द्वेष, निर्दयता, कायरता, और इनसे उलटी तमाम आदतें इसी तरह विचारोंसे पैदा होती हैं । इसी तरह हमारे मनमें राग, द्वेष पैदा होता है । इसी प्रकार हमारी तबियतमें हर्ष, विषाद, शोक, आनन्द या खेद पैदा होता है । ऐसे ही हम स्वयं अपने तथा दूसरोंके लिए आशा और प्रसन्नताके स्रोत हो सकते है और ऐसे ही उनके लिए निराशा और दुःखके कारण बन सकते हैं। __ मनुष्यके जीवन में इससे ज्यादह सच्ची और कोई बात नहीं है कि हम जैसे बननेका विचार करते हैं वैसे ही बन जाते हैं । यह बात बिलकुल सच है और इसकी सचाईमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि आदमी जैसा विचार करता है, वैसा ही बन जाता है । उसका
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