Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ चरित्र आदतोंका समूह है। उसकी आदते उसके कार्योंसे बनी हैं । और उसका प्रत्येक कार्य विचारपूर्वक है, अर्थात् प्रत्येक कार्यके पूर्व में उसके मनमें उस कार्यके करनेका विचार पैदा हुआ है । अतएव यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि हमारे विचारोंसे ही हमारा चरित्र बनता है । विचार ही मूल कारण हैं । . विचारोंसे ही हम अभीष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और विचारोंसे ऊँचेसे ऊँचे पद पर पहुँच सकते हैं। केवल दो बातें ज़रूरी हैं । एक यह कि मनुष्यको अपना उद्देश और मनोरथ निश्चित कर लेना चाहिए । दूसर यह कि सदा उनकी प्राप्तिके उद्योग करते रहना चाहिए । चाहे उसमें कितनी ही कठिनाईयाँ सहनी पड़ें. और कितनी ही आपत्तियोंकासामना करना पड़े । स्मरण रक्खो कि स्थिर प्रकृति और दृढ चरित्र मनुष्य वही है जो अपने मनोरथकी · सिद्धिमें भावी लाभके लिए वर्तमान सुखकी परवा नहीं करता । सदा उसको तलांजुलि देनेको तैयार रहता है । वह कठिनाईयाँ दूर करता हुआ और आपत्तियोंको सहता हुआ अपने उद्देशकी प्राप्तिमें लवलीन रहता है और एक दिन अवश्य सफलताको प्राप्त कर लेता है। उसकी मनोकामना पूरी होजाती है और वह इच्छातीत होजाता है । (क्रमशः) दयाचन्द्र गोयलीय बी. ए.। * श्रीयुत राल्फ बाल्डो ट्राईनके ' करैक्टर बिल्डिंग-थाट पावर ' नामक ग्रन्थका स्वतंत्र अनुवाद । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66