Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 30
________________ ६०४ यहाँ एक बात, और कह देनी जरूरी है कि कोई विचार केवल उस विचारको दूर करनेका ही विचार करनेसे दूर नहीं होता; उसके दूर करनेका सरल और निश्चित उपाय यह है कि मनको किसी और कार्यमें लगाया जाय अथवा मनमें उस विचारका कोई प्रति. कूल वा अन्य कोई उत्तम विचार भर दिया जाय । ऐसा करनेसे बुरा विचार स्वयमेव मनसे निकल जायगा और उत्तम विचार उसका स्थान ले लेगा । पहले पहल किसी विचारको निकालनेके लिए तबियत पर दबाव डालना होगा, परन्तु ज्यों ज्यों उसके लिए उद्योग किया जायगा त्यों त्यों उसमें कठिनाई कम और आसानी अधिक होती जायगी। और इसके विपरीत उत्तम विचारोंको मनमें स्थान देनेकी शक्ति बढ़ती जायगी । परिणाम यह होगा कि धीरे धीरे शराब पीने अथवा और किसी बुरे कामके करनेका विचार कम होता जायगा और यदि कभी ऐसा विचार आयगा भी, तो वह आसानीसे निकाल दिया जा सकेगा और एक दिन वह आयगा कि जब उस विचारका मनमें प्रवेश ही न होने पायगा । एक उदाहरण और भी दिया जाता है । मान लो कि एक आदमीका स्वभाव जरा चिडचिडा है अर्थात् उसे जल्दी गुस्सा आजाता है । यदि कोई उसे कुछ कह देता है अथवा उसकी इच्छाके विरुद्ध कोई काम कर देता है तो वह बिगड़ खड़ा होता है और नाराज भी होने लगता है । अब इस दशामें वह जितना अधिक बुरा मानेगा और जितना अधिक अपने रोषको जाहिर करेगा उतना ही अधिक उसका क्रोध बढ़ता जायगा । ज़रा ज़रा सी बात पर उसे क्रोध आने लगेगा और उसके लिए क्रोधका त्याग करना दिन दिन कठिन होने लगेगा; यहाँ तक कि रोष, क्रोध, घृणा, शत्रुता और बदला लेनेकी इच्छा उसके स्वभाव हो जायँगे । प्रसन्नता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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