Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ स्वयं भी खरीद कर थोडीसी पी लेता है । उसको स्वप्न में भी इस बातका ख्याल नहीं होता कि मैं क्या कर रहा हूँ और इसका क्या भयंकर परिणाम होगा। धीरे धीरे उसको शराबकी आदत पड़ जाती है और अब उसके लिए उसका छोड़ना कठिन हो जाता है। पर भी वह कुछ परवा नहीं करता; वह समझता है कि मैं अपनी इच्छासे ही कभी कभी पी लेता हूँ । जब देखूँगा कि इसकी आदत ही पड़ गई, तब छोड़ दूँगा: परन्तु यह केवल उसका विचार ही है। उसके लिए शराब दिन दिन जरूरी होती जाती है और एक दिन वह आता है कि जब हम उसे पक्का शराबी देखते हैं । अब उसे स्वयं अपनी हालत पर शोक और पश्चात्ताप होता है । लज्जा, घृणा, अपमान और निर्धनता के कारण उसे अपने पिछले दिनोंकी याद आती है । परन्तु अब उसका जविन बिलकुल नीरस और निराश हो गया है । यह उसके लिए आसान था कि वह शराबको कभी पीता ही नहीं, या पीता भी तो इस अवस्थाको पहुँचनेसे पहले ही उसका त्याग कर देता ! परन्तु वर्तमान अवस्था में भी चाहे यह कितनी ही गिरी हुई हो, कितनी ही बुरी हो, वह चाहे तो इसका त्याग कर सकता है और फिर एक बार पहले के समान सुख और शांति को प्राप्त कर सकता है । आप पूछेंगे कि इसका उपाय क्या है ? उपाय यह है कि जब उसके मनमें शराब पीनेकी इच्छा हो, तत्काल उस इच्छाको रोक दे - एक मिनिट की देर न करे। यदि जरा भी देर करेगा - जरा भी उस इच्छा को अपने मनमें स्थान देगा, तो फिर उसका निकलना कठिन हो जायगा । चिनगारीका पहले ही बुझा देना आसान है । जब घरमें आग लग जाती हैं तब उसका बुझाना कठिन हो जाता है । अतएव बुरे विचारको मनमें आतें ही रोक दो । इसी में सारी सफलता है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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