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स्वस्थताका बलिदान कर सकता हूँ, तो क्या अक्षय सुरक्की प्राप्ति के लिए इन सांसारिक भोगोंको उत्सर्ग नहीं कर सकूँगा ? " इस तरहके विचारोंकी अटूट परम्परा उस नटके मनमें उठने लगी और उनका वेग - उनकी शक्ति इतनी बढी कि उसके आसपास की अज्ञानता और निर्बलताके सारे किले बातकी बात में गिर गये और भीतरका सूर्य प्रकाशित हो उठा ! तारपर नृत्य करता हुआ नट एक क्षण में एक पूजनीय पुरुष बन गया !
- जैनहितेच्छु ।
चरित्र - गठन और मनोबल ।
हम अपने जीवन के प्रत्येक समय में ऐसी अनेक नई नई आदतें सीखते रहते हैं जिनका हमें ज्ञान भी नहीं होता। उनमेंसे कुछ आदतें तो बहुत अच्छी होती हैं, परन्तु कुछ बहुत बुरी होती हैं। कुछ ऐसी होती हैं कि स्वयं तो वे बहुत बुरी नहीं होतीं, परन्तु आगे चल कर उनके फल बहुत ही बुरे होते हैं और उनसे बहुत कुछ हानि, कष्ट और पीड़ा पहुँचती है। कुछ उनसे बिलकुल उलटी होती हैं जिनसे सदा हर्ष और आनन्द बढ़ता रहता है ।
अब प्रश्न यह है कि क्या अपनी आदतें बनाना सदा अपने अधिकारमें है ? क्या यह बात हमारे हाथ में है कि हम जिस तरहकी चाहें अपनी आदतें बना लें, जिस आदतको चाहें ग्रहण करें और जिस आदतको चाहें छोड़ दें ? इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि हाँ, यह बात बिलकुल हमारे हाथ में है । हम अपना चरित्र चाहे जैसा बना सकते हैं। मनुष्य वही हो जाता है जो वह होना चाहता है ।
यह शक्ति मनुष्यमात्र में स्वाभाविक है । परन्तु यह शक्ति उस समय
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