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तक कुछ भी कार्यकारी नहीं, जब तक इसका उपयोग मालूम न हो। अतएव पहले इसका उपयोग बताना जरूरी है।
सबसे पहले मनुष्यको इस स्वाभाविक शक्तिके अस्तित्व और कार्यका सम्यक् श्रद्धान होना चाहिए। पश्चात् उस महान् नियम पर विचार करना चाहिए जिसपर चरित्रगठनकी नीव रक्खा जाती है, जिसके अनुसार प्रवृत्ति करनेसे पुरानी, बुरी, खोटी और नीच आदतें छूट जाती हैं, और नई, अच्छी और ऊँची आदतें पैदा हो जाती हैं, और जिससे . जीवनमें सर्वदेश वा एकोदेश परिवर्तन हो सकता है । इसके लिए केवल एक बातकी जरूरत है और वह यह है कि मनुष्य पहले उस नियम पर सच्चे दिलसे विचार करे, और फिर उसके अनुसार कार्य करनेका दृढ़ संकल्प करे। ___ मनोबल ही मनुष्यके सम्पूर्ण कार्योका उत्तेजक है । इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्यका प्रत्येक कार्य जो संकल्प द्वारा किया जाता है एक विचारका परिणाम है। जिस कार्यका जितना अधिक विचार किया जाता है वह कार्य भी उतना ही अधिक होता है। जो कार्य बार बार किया जाता है, वह धीरे धीरे आदतका रूप धारण करने लगता है। अनेक आदतोंके समूहका नाम ही चरित्र है। इसीको अँगरेजीमें करैक्टर Character और हिन्दीमें ' चालचलन' कहते हैं। इसलिए तुम जिस तरहके काम करना चाहते हो और जैसा अपने आपको बनाना चाहते हो उसी तरहके विचार तुम्हारे दिलमें आने चाहिए। जो काम तुम करना नहीं चाहते, जिस आदतको तुम ग्रहण करना नहीं चाहते, उनके पैदा करनेवाले विचार कभी क्षणमात्रके लिए भी तुम्हारे मनमें न आने चाहिए।
यह एक मानी हुई बात है और इसमें किसीको तनिक भी विवाद नहीं है कि यदि मनमें कोई विचार कुछ समयतक बराबर आता रहे तो
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