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होती जायगी। ऐसी दशामें असफलतामें भी सफलता है। क्यों कि उद्योगमें तो असफलता होती नहीं और उद्योग चाहे जब किया जाय काम करनेकी शक्तिको ही बढ़ाता है। एक न एक दिन अवश्य सफलता होगी और हमारी मनोकामना पूर्ण होगी । अतएव यह बात सिद्ध है कि हम अपने विचार चाहे जिस तरहके बना सकते हैं और चाहे जैसा अपना चरित्र निर्माण कर सकते हैं। - यहाँ पर दो तीन उदाहरण दिये जाते है। आशा है कि उनसे यह , विषय बिलकुल स्पष्ट हो जायगा। , ... मान लो कि एक आदमी किसी बड़ी कम्पनीका कोषाध्यक्ष ( खजानची ) या किसी बैंकका मैनेजर है । एक दिन उसने एक समाचारपत्रमें पढ़ा कि एक मनुष्यने सिर्फ चार ही पांच घंटोंमें किसी सौदेमें कई लाख रुपये कमा लिये । थोड़े ही दिनके बाद उसने फिर. एक ऐसे ही मनुष्यका हाल पढ़ा । अब उसके जीमें भी ऐसी ही लालसा पैदा होने लगी । वह विचार करने लगा कि ये आदमी कितनी थोड़ी देरमें लखपती हो गये ! मैं भी इन्हींका अनुकरण करके शीघ्र लखपती हो जाऊँगा । यही विचार उसके मनमें रात दिन घूमने लगा। उसने ऐसे दो चार आदमियोंका हाल तो पढ़ा जो एक बारगी अमीर हो गये, परन्तु यह उसने कभी नहीं सोचा कि ऐसे भी बहुतसे आदमी हैं जो ऐसा करनेसे अपनी सारी पूँजी खोकर भिखारी हो बैठे हैं । उसकी इच्छा दिनोंदिन बढ़ने लगी। अन्तमें एक दिन उसने अपनी तमाम पूँजी वैसे ही किसी काममें लगा दी । परिणाम वही हुआ जो प्रायः ऐसी दशाओंमें हुआ करता है अर्थात् उसको घाटा पड़ गया। उसकी सारी पूँजी जाती रही । अब वह विचार करता है कि अमुक कारणसे मुझे सफलता
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