________________
५९३
सब बातोंका हक इन्हें जन्मसे मिला हुआ होता है । इसलिए इनकी इच्छा के विरुद्ध शब्दोंका उच्चारण करना राजद्रोह कहलाता है और जो इस तरहका साहस करनेपर उतारू होता है, उसे अपनी इज्जत - से ही नहीं - जिन्दगी से भी हाथ धोना पड़ता है। गरज यह कि राजासे कोई कुछ न कह सका; और तो क्या उसके शरीर की सर्वथा अधिकारिणी महाराणी भी अपने अधिकारको जोखिममें जाता हुआ देखकर कुछ न बोल सकी। देखिए, यह कैसी शोचनीय दासता या गुलामी है। इस पर तुर्रा यह कि हम लोग इसी गुलामीको राजभक्ति और पातिव्रत्य कहकर फूले अंग नहीं समाते हैं। ऐसी अधम मानसिक दुर्बलता से - राजा या पति में इस प्रकार सीमासे अधिक पूज्यपना स्थापित करने से हमें समय समय पर बहुत ही बड़े बड़े कष्ट उठाने पड़े हैं। आत्माभिमान क्या चीज हैं और हमारे मनुष्यत्वसम्बन्धी कुछ अधिकार हैं या नहीं, अफसोस, कि इन बातोंके जानने की भी हमें मनाई की जाती है। हम इस आत्माभिमान और अधिकारको - जो कि प्रकृतिदत्त या स्वाभाविक है - प्रसन्न करनेकी अपेक्षा मनुष्यकृत रूढ़ियों और मनुष्यकृत राजाओंको हर तरहके कष्ट सहन करके प्रसन्न करना, अधिक पसन्द करते हैं । राजा, पति और समाजकृत रूढ़ियोंके आदरके लिए अन्याय और अत्याचार भी सहन करना; इतना ही नहीं, अन्यायाचरण करते हुए देखकर भी 'न' न करना और इस तरह अपने तथा अपने कुटुम्बके न्याय्य सुखोंको भी होम कर देना ये सब बातें इस देश में 'भक्ति' के नामसे प्रसिद्ध हैं ।
हमने जब तक इस भक्तिका रोना रोया, तब तक एलाकुमारका तीसरी बारका खेल भी हो गया और फिर वैसी ही आज्ञा मिलनेके कारण वह चौथी बार बाँस पर चढ़ गया । उसे राजाकी व्यभिचा
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org