Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 9
________________ ६९ त्रिशिलाका महापुराण और अन्य ग्रंथ; गद्यग्रंथ - गद्य-चिन्तामणि, तिलकमंजरी, इत्यादि; पद्यग्रंथ - पार्श्वाभ्युदय, पार्श्वनाथचरित, चंद्र प्रभचरित, धर्मशर्माभ्युदय, नेमिनिर्वाणकाव्य, जयंतचरित, राघवपांडवीय ( उपनाम द्विसंधानकाव्य ), त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, यशोधरचरित, क्षत्रचूड़ामणि, मुनिसुव्रतकाव्य, बालभारत, बालरा - मायण, नागकुमारकाव्य और अन्यग्रंथ; चम्पू - जीवंधरचम्पू, यशस्तिलकचम्पू, पुरुदेवचम्पू, इत्यादि अलंकारग्रंथ - वाग्भटालङ्कार, अलंकारचिंतामणि, अलंकारतिलक, हेमचंद्रकृत काव्यानुशासन, इत्यादि; नाटक-विक्रांतकौरवपौरवीय, अंजनापवनंजय, ज्ञानसूर्यो - दय, इत्यादि चिकित्साग्रंथ - अष्टांगहृदय गणित ( खगोल ) व फलित ज्योतिषग्रंथ - गणितसारसंग्रह, त्रिलोकसार, भद्रबाहुसंहिता, जम्बूद्रीपप्रज्ञप्ति, चंद्रसूर्यप्रज्ञप्ति, इत्यादि; न्यायग्रंथ - आप्तपरीक्षा, पत्र परीक्षा, समयप्राभृत(?)न्यायविनिश्रयालंकार, न्याय कुमुदचंद्रोदय, आप्तमीमांसालंकृति ( अष्टसहस्री ), इत्यादि हेमचंद्रकृत योगशास्त्र और अन्यग्रंथ | जैन महात्माओं द्वारा रचित सैकड़ों ग्रंथोंकी गणना करना यहाँ संभव नहीं है। इनमें से कुछ ग्रंथ तो प्रभावशाली और अग्रशाली मनुष्योंद्वारा, जिन्होंने इस कार्यको प्रेम कृत्य समझा है, प्रकाशित हो चुके हैं और शेष अभी समय के प्रकाशकी प्रतीक्षा कर रहे हैं । ६ - प्राचीन जैनियोंने अपने निवासस्थानों में अपने मतका प्रचार करने के लिये बहुत से अनुपम और उत्तम ग्रंथ लिखे । उन स्थानोंकी देशी भाषाओं के साहित्यकी वृद्धि करने में भी उन्होंने कुछ कम परिश्रम न किया। जो ग्रंथ उन्होंने देशी भाषाओं में लिखे हैं वे अधिक १ अष्टाङ्गहृदय के कर्त्ता वैद्यवर वाग्भट जैन थे, इसमें भी सन्देह है । अब तककी खोजोंसे वे बौद्ध प्रतीत होते हैं । - सम्पादक । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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