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ग्रंथ में कई ऐसी गाथायें हैं जो उसी नामके संस्कृत ग्रंथके कई श्लोकों से इतनी विशेषतर मिलती जुलती हैं कि यह तामिलका ग्रंथ उस संस्कृत ग्रन्थका पद्यानुवाद कहा जा सकता है ।
(३) उदयानन गधई, जो कि वत्सदेशके राजा उदयनका चरित है। छह सगका एक अज्ञात जैन कृत ग्रंथ है, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। इस ग्रंथको एक दूसरे उदयन-काव्य नामक ग्रंथके साथ न मिला देना चाहिए । क्योंकि उसमें भी वही चरित है किन्तु वह एक दूसरे ग्रंथकर्ताका बनाया हुआ है। इसमें ६ सर्ग हैं जिनमें ३६७ गाथायें सर्वथा भिन्न भिन्न छंदों की हैं। वह ग्रंथ जिसकी गणना पांच लघु कविताओं में है उपर्युक्त पहला ग्रंथ हैं, क्योंकि विख्यात टीकाकार जैसे 'नच्छनर्किनियर ' इत्यादिने अपने ग्रन्थोंमें इसी ग्रंथ - मेंसे वचन उद्धृत किये हैं ।
(४) नागकुमार काव्य, जो कि कालके विनाशसे बञ्चित नहीं रहा है।
(५) नीलकेसी जो १० सर्गों में है। इस ग्रंथ में जैनधर्मके तत्त्वोंकी पुष्टि की गई है; इसके कर्त्ता का पता नहीं । इस ग्रंथपर मुनि ' समय दिवाकर' की लिखी हुई एक बड़ी टीका है ।
(ङ) पंडित गुणवीररचित ' वज्जिरानंदिमलई, ' जो कि एक कविता है
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(च) मेरुमंदरपुराण, जिसके कर्ता वामनाचार्य हैं जो कि संस्कृत और तामिल दोनोंके समान पंडित हैं । इस ग्रंथ में १४०६ गाथायें हैं जो १२ सर्गे में हैं। इसमें दो भाई मेरू और मंदरका वृत्तांत और जैनमतका संपूर्ण विवरण दिया है ।
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