Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 39
________________ व्यवसायका विशेष आकार प्रकार लेकर मनुष्य जुदा जुदा कोठोंमें विभक्त हो जाता है। किन्तु जब बालक संसारक्षेत्रमें पैर रखते हैं तब उसके पहले उनका उनके पालनपोषण कर्त्ताओंके या अभिभावकोंके सांचेमें ढलना उनके लिए कल्याणकारी नहीं है। ___ उदाहरणके लिये एक धनीके लड़कोंको देखिए । यह ठीक है कि धनीके घरमें लड़के जन्म लेते हैं किन्तु वे कोई ऐसी विशेषता लेकर जन्म नहीं लेते कि जिससे मालूम हो कि वे धनीके लड़के हैं। धनीके लड़के और गरीवके लडकेमें उस समय कोई विशेष प्रभेद नहीं होता। जन्म होनेके दूसरे दिनसे मनुष्य उस प्रभेदको अपने हाथों गढ़ता है। ऐसी अवस्थामें मावापके लिए उचित था कि वे पहले लड़कोंके साधारण मनुष्यत्वको पक्का करके उसके बाद उन्हें आवश्यकतानुसार धनीकी सन्तान बनाते । किन्तु ऐसा नहीं होता, वे सब प्रकारसे मानव सन्तान बननेके पहले ही धनीकी सन्तान बन जाते हैं-इससे दुर्लभ मानव जन्मकी बहुतसी बातें उनके भाग्यमें बाद पड़ जाती हैं-जीवनधारणके अनेक रसास्वादोंकी क्षमता ही उनकी नष्ट हो जाती है। पहले तो पिंजरेके बद्धपक्ष पक्षाके समान धनिक पुत्रको उसके माबाप हाथ पैरोंके रहते हुए भी पंगु बना डालते हैं । वह चल नहीं सकता, उसके लिए गाड़ी चाहिए; बिलकुल मामूली बोझा उठानेकी शक्ति नहीं रहती, कुली चाहिए; अपने काम कर सकनेकी सामर्थ्य नहीं रहती, चाकर चाहिए । केवल शारीरिक शक्तिके अभावसे ही ऐसा होता हो, सो नहीं है,-लोकलज्जाके मारे उस हतभागेको सुस्थ तथा सुदृढ अङ्ग प्रत्यङ्ग होने पर भी पक्षाघात ( लकवा ) ग्रस्त होना पड़ता है। जो सहज है वह उसके लिए कष्टकर है, और जो स्वाभाविक है वह उसके लिए लज्जाकर हो जाता है। समाजके लोगोंके मुँहकी ओर For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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