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जब देखते दूरसे आते मुझे, . किलकारियां मोदसे जो भरते ॥ समुहायके धायके आयके पास
उठायके पंख, नहीं टरते। वही हाय, हुए असहाय अहो ! इस नीचके हाथसे हैं मरते !
(१३) गृहलक्ष्मी नहीं, जो जगाये रहा
करती थी सदा सुख कल्पनाको। शिशु भी तो नहीं, जो उन्हींके लिए,
____ सहता इस दारुण वेदनाको ॥ वह सामने ही परिवार पड़ा पड़ा
भोग रहा यम-यातनाको । अब मैं ही वृथा इस जीवनको रख, ____ कैसे सहूँगा विडम्बनाको ?
(१४) यही सोचता था यों कपोत, वहाँ
. चिड़ीमारने मार निशाना लिया। गिर लोट गया धरती पर पक्षी,
बहेलिएने मनमाना किया ॥ पलमें कुलका कुल काल करालने,
भूत-भविष्यमें भेज दिया। क्षणभंगुर जीवनकी गतिका यह देखो, निदर्शन है बढ़िया ॥
(१५) हरएक मनुष्य फँसा जो ममत्त्वमें,
तत्त्व-महत्त्वको भूलता है।
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