Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 74
________________ IQEERe meEREEEEEEEEEEEEEEET Parewगावालाला waladala आँखकी किरकिरी। हिन्दीमें अभिनव उपन्यास । सुप्रसिद्ध प्रतिभाशाली कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरके 'चो। खेरवाली' नामक बंगला उपन्यासका यह हिन्दी अनुवाद है। हिन्दीमें इसकी जोडका एक भी उपन्यास नहीं । इसमें मनुष्यके स्वाभाविक भावोंके चित्र खींचकर उनके द्वारा , मित्रकी तरह, आत्माकी तरह शिक्षा दी गई है । स्वतः हृद यको गुदगुदा कर परिणामोंको दिखा कर अच्छे विचारोंको । विनय दिलानेवाली शिक्षा ही चिरस्थायिनी होती है। । क्योंकि उसे ग्रहण करनेके लिए लेखक किसी तरहका आग्रह या अनुरोध नहीं करता । इस उपन्यासमें इस वातपर पूरा E पूरा ध्यान रक्खा गया है। स्वाभाविक चरित्रचित्रण अगर । चित्रका रेखाचित्र है तो छोटे छोटे भावोंका चित्रण उसमें तरह तरहके रंगोंका भरना है, जिन रंगोंसे वह चित्र प्रस्फुटित हो उठता है। ऐसा चित्र बनाना रवीन्द्रबाबू जैसे सुचतुर शब्दचित्रकारका ही काम है। इसमें भावोंके उत्थानपतन और उनकी विकाशशैली वर्षामें पहाड़ोंपरसे गिरते हुए झरनोंकी तरह बहुत ही मनोहारिणी है । हृदयके स्वाभाविक उद्गार-छोटी छोटी घटनाओंका बड़ी बड़ी घटनाओंके बीच हो जाना और उनके चकित कर देनेवाले परिणाम बड़े ही स्पृहणीय हैं। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि ऐसा उपन्यास हिन्दीमें तो क्या बड़ी बड़ी समृद्धिशालिनी भाषाओंमें भी नहीं है । छपाई, जिल्द आदि सभी लासानी। का मूल्य पौने दो रुपया। d aleबा बालाAalinire Jain EducatDETERREE E EEEEEEEEEEEEEEEERED For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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