Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 65
________________ १२५ 1 स्थानकी कमी से हम उत्सवका पूरा विवरण न देकर केवल उतने ही शब्द यहाँ प्रकाशित करेंगे जो श्रीसेठीजीने उस समय कहे थे - " सज्जन-वृन्द, आज आप लोगोंने बड़ी भारी कृपा करके मेरे इस गरीब घरको पवित्र किया। इसका मैं बहुत ही आभारी हूँ । आज प्रकाशचन्द्रका जन्म दिन है । यह जब पैदा हुआ था तब इसने इस घर में आन -- न्दके बाजे बजवाये थे और आज यह नौवें वर्षका उल्लंघन कर दशावें - में पदारोपण करता है, इसलिए आज भी आनन्दोत्सव मनाया जा रहा है । किन्तु मेरी समझ में उस खुशी में और इस खुशी में बहुत अन्तर है । ' इसका वर्णन करनेके लिए बहुत समय चाहिए इसलिए मैं उसका ज़िक्र न करके अपने उद्देश्यकी ओर झुकता हूँ। बान्धवो, मैं अपने लख्ते जिगर प्रकाशचन्द्रसे आम लोगोंकी तरह यह आशा नहीं रखता कि यह मुझे धन कमा कर दे। मैं नहीं चाहता कि प्रकाशचन्द्र बड़े बड़े महल मकानात चुनाबे और बुढ़ापेमें मेरी सेवा करे। मैं नहीं चाहता कि यह बी. ए, एम. ए, पासकर तहसीलदारी या नाजिमी कर गुलाम बने । मैं सौ दो सौ रुपये मासिक वेतनमें इसका जीवन नहीं बिकवाना चाहता। मैं चाहता हूँ कि जिस भूमिपर जन्म लेकर इसने आपको इतना बड़ा किया है, जिसके अन्न जल वायुसे पालित पोषित होकर यह अपनी प्राणरक्षा कर सका है, जिसके सन कपासादिके कपड़ों से अपने शरीरको बचा सका है उसी जन्म भूमिकी भलाई के लिए उसकी बहबूदीके लिए और उसकी उन्नति के लिए यह अपना सर्वस्व अर्पण कर दे। बेटा प्रकाश, आजसे मैंने तुमको उस स्वर्णमयी धराका, उस भीमार्जुन जैसे वीरोंको जन्म देनेवाली वसुन्धराका, कर्ण सदृश दानियों की जन्मदातृ भूमिका, समन्तभद्राचार्य, शंकराचार्य, हेमचन्द्राचार्य, अकलङ्क भट्टादि तत्त्ववेत्ताओं की धारक धरणीका, गौत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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