Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 63
________________ १२३ पाठ्य पुस्तकें तैयार करवानेकी ज़रूरत । ४ जैनसाहित्यका प्रसार करनेके लिए पाश्चात्य विद्वानोंने जो प्रयत्न किया है, उसके विषयमें धन्यवाद देना और विशेष प्रयत्न करनेके लिए प्रेरणा करना । ५ जैन इतिहास तैयार करनेकी आवश्यकता । ६ जैन म्यूजियमके स्थापित करनेकी आवश्यकता । ७ प्राचीन खोजोंके द्वारा जैन साहित्य प्रगट करनेकी आवश्यकता । ८ भिन्न भिन्न भाषाओंके द्वारा जैनसाहित्य प्रगट करानेकी आवश्यकता। ९ प्रगट होनेवाले साहित्यको पास करनेवाले एक मण्डलकी आवश्यकता । इसमें सन्देह नहीं कि जैनियोंमें एक साहित्यसम्मेलनकी बहुत बड़ी जरूरत है; परन्तु यह बात अभी विचारणीय ही है कि इसका समय अभी आया है या नहीं। दिगम्बर सम्प्रदायके शिक्षितोंसे हमारा जो कुछ परिचय है और अपने श्वेताम्बरी और स्थानकवासी मित्रोंसे हमारी जितनी जानकारी है उसके खयालसे हम समझते हैं कि अभी हममें साहित्यसेवी बहुत ही कम हैं और जब तक साहित्यसेवियोंकी एक अच्छी संस्था न हो जाय तब तक इस विषयमें सफलताकी बहुत ही कम आशा है। ९. बालक साधु न होने पावें । बहुतसे साधु वेषधारी लोग छोटे छोटे बच्चोंको फुसलाकर साधु बना लेते हैं और उनसे अपनी शिष्यमण्डलीकी वृद्धि करते हैं। श्वेताम्बर और स्थानकवासी सम्प्रदायके जैनियोंमें तो इसका बहुत ही जोर है। प्रतिवर्ष बीसों ना समझ बच्चे साधुका वेष धारण किया करते हैं और जब ये जवान होते हैं तब इनके द्वारा ढोंग और दुराचारोंकी . • वृद्धि होती है। इनमें बहुत ही कम साधु ऐसे निकलते हैं जो इस पवित्र नामके धारण करने योग्य हों यह देखकर प्रान्तीय व्यवस्था Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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