Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 62
________________ १२२ करके जो नईनई खुलती हैं, अन्धाधुन्ध खर्च किया जाता है। यह न होना चाहिए। संचालकोंको समाजके धनको अपना अपना कमाया हुआ समझकर बहुत खयाल से खर्च करना चाहिए । और संस्थाओं की आवश्यकताओंको जहाँ तक बने कम करना चाहिए । आयोजनों और आडम्बरों की ओर कम दृष्टि रखकर कामकी ओर विशेष दृष्टि रखना चाहिए | इस विषय में इसी अङ्क में प्रकाशित ' शिक्षासमस्या नामक लेखकी ओर हम पाठकोंकी दृष्टि आकर्षित करते हैं । उसमें I इस विषयको बहुत ही स्पष्टतासे समझाया है । ८. जैन साहित्य सम्मेलन । → आगामी मार्चकी ता० २ - ३ - ४ को जोधपुर में जैनसाहित्य सम्मेलनका प्रथम अधिवेशन होगा । उस समय जोधपुर में श्वेताम्बर सप्रदाय के प्रसिद्ध साधु श्रीविजयधर्म सूरि रहेंगे और उनसे मिलनेके लिए जर्मनीके विद्वान् डाक्टर हरमन जैकोबी पधारेंगे । इस शुभ सम्मिलनके अवसरपर जैनसाहित्य सम्मेलनका अधिवेशन एक तरह से बहुत ही उचित हुआ है । सम्मेलन के सेक्रेटरी से मालूम हुआ है कि जैनों के तीनों सम्प्रदाय के साहित्य सेवियों को इस जल्से पर शामिल होनेका निमंत्रण दिया गया है । यह एक और भी बहुत अच्छी बात है । यदि हम सब साहित्य जैसे विषयकी चर्चा करनेके लिए भी एकत्र न हो सके तो और किस काममें एक हो सकेंगे ? जिन जिन कामोंको तीनों सम्प्रदायवाले एक साथ मिलकर कर सकते हैं उनमें एक यह भी है । इस सम्मेलनमें अनेक विषयोंपर निबन्ध पढे जायेंगे और निम्नलिखित विषयोंकी खास तौर से चर्चा होगी:- १ प्राकृत भाषाका कोश और व्याकरण नई पद्धतिके अनुसार तैयार करवाना। २ यूनीवर्सिटियों में प्राकृत भाषा दाखिल करवानेकी आवश्यकता । ३ जैन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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