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इतने में कबूतरी आई वहाँ;
दशा देखके व्याकुल ही मनमेंकहने लगी, हाय, हुआ यह क्या !
सुत मेरे हलाल हुए वनमें । अब जालमें जाके मिलूं इनसे,
सुख ही क्या रहा इस जीवनमें !!
(१०) उस जालमें जाके बहेलिए के,
ममतासे कवृतरी आप गिरी। इतनेमें कबूतर आया वहाँ;
उस घोसलेमें थी विपत्ति निरी ।। लखते ही अँधेरा सा आगे हुआ,
घटनाकी घटा वह घोर विरी । नयसोंसे अचानक बूंद गिरे, चेहरेपर शोककी स्याही फिरी ।।
(११) तब दीन कपोत बढे दुखसे
कहने लगा-हा अति कष्ट हुआ ! ‘निबलोहीको देव भी मारता है,
__ये प्रवाद यहाँपर स्पष्ट हुआ । सब सूना किया, चली छोड़ प्रिया,
सब ही विधि जीवन नष्ट हुआ । इस भांति अभागा अतृप्त ही में,
सुख भोगके स्वर्गसे भ्रष्ट हुआ ।।
कल कूजन केलि-कलोलमें लिप्त हो.
बच्चे मुझे जो मुखी करते।
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