Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 12
________________ ७२ (ग) जीवक चिन्तामणि अर्थात् पौराणिक जीवक राजाका चरित जो एक विख्यात जैन मुनि तिरुत्त कुदेवर रचित है। इस पुस्तक में १३ खंड अर्थात् लम्बक हैं जिनमें ३१४५ गाथायें हैं । इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि इसकी कुछ गाथाओंकी ठीक ठीक छाया (बिम्ब-प्रतिबिंब ) वादीभसिंहकृत (संस्कृत) क्षत्रचूड़ामणिमें है और दोनोंमें इतनी समानता है कि यह बतलाना सर्वथा सम्भव नहीं है कि किस किसका अनुकरण किया है । तामिल साहित्य के पंच - महाकाव्यों में इसका 1 स्थान प्रथम है । शेष चार काव्यों में से दो काव्य अर्थात् ' वलयाप्ति ' और ' कुंदलकेसी ' दो ग्रन्थ जैन लेखकोंके बनाये हुए हैं। मालूम होता है कि इन दोनोंमेंसे कुंदलकेसीका अस्तित्व तो है नहीं और दूसरे काव्य के भी टुकड़े ही समय समय पर प्रकाशित होते रहे हैं । 1 (घ) पांच लघु कवितायें भी ( जिनको सिरु - पंचकाव्य कहते हैं ) सब जैनियोंद्वारा रची गई हैं। (१) तोलामोलित्तेवर ( विवाद में अजेय ) कृत चूलामणि में २१३१ चौपाइयाँ १२ सर्गो में हैं और यह ग्रंथ ईसाकी दसवीं शताब्दिके आरंभ में रचा गया था । मिस्टर टी. ए. गोपीनाथ एम. ए., सुपरिन्टेंडेन्ट ऑफ आर्चिऔलाजी, ट्रावनकोर, ने जो संस्कृत यशोधरकाव्यकी प्रस्तावना लिखी है उसमें स्पष्टतया अपनी यह सम्मति दी है कि श्रवणबेलगोला के मलिषेणके समाधिलेखके श्रीवर्द्धदेव और तोलामोलित्तेवर एक ही हैं और जिस ग्रंथका हवाला उस लेख में दिया है वह उसी नामका तामिल काव्य ही है । (२) यशोधरकाव्य एक अज्ञात जैन कृत है। इसमें चार सर्ग हैं जिनमें ३२० छंद हैं। यह पौराणिक राजा यशोधरका चरित्र है । इस १. चूलामणिः कवीनां चूलामणिनामसेव्य काव्य कविः । श्रीवर्द्धदेव एव हि कृतपुण्यः कीर्तिमाहर्तुम् ॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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