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(छ) शिक्षाप्रद कवितायें--
(१) ' पलामोली,' जैनकवि ' मुतरुरई अरायनर ' कृत बुद्धिविषयक सूक्तियोंका ग्रंथ है जिसमें ४०० गाथायें हैं और प्रत्येक गाथामें किसी विख्यात सूक्तिकी व्याख्या है जो उसीके अंतमें दी गई है।
(२) 'आचारकोवई,' 'पेरूवेपीमुल्लेर ' कृत (१०० गाथाओंका ) ग्रंथ है जिसमें सदाचारके नियम लिखे हैं। (३) तिरुकड्डकम, जो ' नलत्तागर ' कृत है। (४) सिरुपंचमूलम, जो ' ममूलनर' के एक शिष्यकृत है। (५) पेलदी, जिसके कर्ता ' मदुरई मामिलसंगमफेम ' के 'मक्कापनर' के एक शिष्य हैं; इत्यादि अन्य ग्रंथ ।
(ज) व्याकरण
(१) 'अहापोरुलिलकानम, जो कि तामिलकी सबसे प्राचीन तोलकाप्पियम नामक व्याकरणके तृतीय भागका संक्षेप है। इसमें पांच अध्याय हैं और 'नरक्कवि राजनंदी' जैन कृत है।
(२) पप्परुंकलम, मुनिकनकसागर कृत छंद और अलंकारका ग्रंथ है, जिसमें तीन सर्ग हैं और ९५ गाथायें हैं।
(३) यप्पुरंकल करिकई, अमृतसागर मुनि कृत पूर्वोक्त ग्रंथकी टीका है।
(४) विराचोलियम, जो राजा वीरचोलको समर्पित एक व्याकरणका ग्रंथ है। इसके कर्ता बुद्धमित्र हैं जो संभवतः जैन थे। इसमें १५१ गाथायें हैं और उसीकी एक टीका भी है। इसमें वर्ण, शब्द, वाक्य, छंद तथा अलंकारोंका वर्णन है। यह ग्रंथ ईस्वी सन्की ११ वीं शताब्दिके लगभग लिखा गया था, (देखो " सँडामिल,, वोल्यूम १०, पृष्ठ २८७।)
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