Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah Author(s): Savyasachi Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha View full book textPage 6
________________ ( ४ ) स्त्रियों से विराग भी होता है। विराग अंश धर्म है, जिसका कारण विवाह है। इस लिए विवाह भी उपचार से धर्म कहलाता है। तो यही बात विधवा विवाह के बारे में भी है । विधवा विवाह से भी एक स्त्री में राग और बाकी सब स्त्रियों में विराग पैदा होता है। इस लिये कुमारी विवाह के समान विधवा विवाह भी धर्म है। यदि कहा जाय कि शास्त्रों में तो कन्या का ही विवाह लिखा है, इस लिए विधवा विवाह, विवाह ही नहीं हो सकता, तो इसका उत्तर यह है कि शास्त्रों में विवाह के सामान्य लक्षण में कन्या शब्द का उल्लेख नहीं है। राजवार्तिक में लिखा है-"सद्वेद्यचारित्रमोहोदयाद्विवहने विवाहः" साता वेदनीय और चारित्र मोहनीय के उदय से "पुरुष का स्त्री को और स्त्री का पुरुष को स्वीकार करना" विबाह है। ऊपर जिस सिद्धान्त से विवाह धर्म-साधक माना गयाहै,उसी सिद्धान्त से विधवा विवाह भी धर्मसाधक सिद्ध हुआ है। इसलिए चरणानुयोग शास्त्र ऐसी कोई आज्ञा नहीं दे सकता जिसका समर्थन करणानुयोग शास्त्र से न होता हो । राजवार्तिक के भाग्य में तथा अन्य ग्रंथों में जो कन्या शब्द का उल्लेख किया गया है, वह तो मुख्यता को लेकर किया गया है। इस तरह मुख्यता को लेकर शास्त्रों में सैंकड़ों शब्दों का कथन किया गया है । इसी विवाह प्रकरण में विवाह योग्य कन्या का लक्षण क्या है, वह भी विचार लीजिए । त्रिवर्णाचार में लिखा है अन्यगोत्रभवां कन्यामनातङ्का सुलतलाम् । प्रायुष्मती गुणान्यां च पितृदत्तां वरेदरः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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