Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah Author(s): Savyasachi Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha View full book textPage 4
________________ ( २ ) "श्री बैरिस्टर साहब के प्रश्नों का उत्तर" जैन जगत (अजमेर) से उद्धत करके ट्रे कृ रूप में जैन समाज के लाभार्थ प्रकाशित किया जाता है। जो जैनी भाई विधवा विवाह के प्रश्न से डर कर दूर भागते हैं उनको चाहिये कि वे कृपा करके इस ट्रैकृको अवश्य पढ़ लेवें। श्राशा की जाती है कि जो जैन बन्धु ज्ञानावरणी कर्मों के उदय से "विधवा विवाह" को बुरा समझते हैं और समाज सुधार के शुभ कार्य में अन्तराय डाल कर पाप कर्म के भागी बनते हैं, उनको इसकी स्वाध्याय कर लेने पर विधवा विवाह की वास्तविकता का सच्चा स्वरूप सहज ही में दर्पणवत् स्पष्ट दीखने लग जावेगा । श्रीयुत "सव्य साची" महोदय द्वारा दिये हुए उत्तर को जैन जगत में पढ़कर कल्याणी नामक किसी बहन की इसी पत्र में एक चिट्ठी छपी है। उस चिट्ठी में बहन कल्याणी ने श्री 'सव्यसाची' जी से कुछ प्रश्न भी किये हैं। इन प्रश्नों का उत्तर भी श्री० 'सव्यसाची' जी ने उक्त 'जैन जगत' में छपवाये हैं । लिहाज़ा, बहन कल्याणी का पत्र व श्रीयुत सभ्य साची द्वारा दिया हुआ इसका उत्तर भी इसी ट्रक में 'जैन जगत' से लेलिया गया है। जो बातें पूर्व में रह गई थीं, वे प्रश्न करके बहन कल्याणी ने लिखवादी हैं । यह बात नहीं है कि यह ट्रैकृ केवल जैनियों के ही लिये लाभदायक हो, बल्कि जैनेतर बन्धु भी इसमें प्रकाशित विधवा विवाह की समर्थक युक्तियों से लाभ उठाकर विरोधियो को मुँह तोड़ उत्तर दे सकते हैं। किस उत्तमता के साथ धर्म चर्चा की गई है, यह बात इसके स्वाध्याय से ही मालूम होगी । -मन्त्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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