Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

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Page 28
________________ ( २६ ) ही हो सकते हैं। संस्कार से हमारे ऊपर प्रभाव पड़ता है और वह प्रभाव प्रायः दूसरों के द्वारा डाला जाता है; परंतु व्रत दूसरों के द्वारा नहीं लिया जा सकता। संस्कार तो पात्र में श्रद्धा, समझ और त्याग के बिना भी डाले जा सकते हैं, परंतु व्रत में इन तीनों की अत्यंत आवश्यकता रहती है । इस लिये भावों के विना व्रत ग्रहण हो ही नहीं सकता । वर्तमान में जो अनिवार्य वैधव्य की प्रथा चल पड़ी है, वह व्रत नहीं है, किन्तु अत्याचारी, समर्थ, निर्दय पुरुषों का शाप है जो कि स्त्रियों को उनकी कमज़ोरी ओर मूर्खतो के अपराध (?) में दिया गया है। प्रश्न ( १५ )-जिसने कभी अपनी समझ में ब्रह्मचर्याणुव्रत ग्रहण नहीं किया है उसका विवाह करना धर्म है या अधर्म? उत्तर—जो मुनि वा धार्यिका बनने के लिये तैयार नहीं है या सप्तम प्रतिमा भी धारण नहीं कर सकतो उसे विवाह कर लेना चाहिये-चाहे वह विधुर हो या विधवा, कुमार हो या कुमारी । ऐसी हालत में किसी को भी विवाह की इच्छा होने पर विवाह कर लेना अधर्म नहीं है ।। प्रश्न (१६)-जिसका गर्भाशय गर्भधारण करने के लिये पुष्ट नहीं हुआ है उसको गर्भ रह जाने से प्रायः मृत्यु का कारण हो जाता है या नहीं? उत्तर-इस प्रश्न का सम्बन्ध वैद्यक शास्त्र से है । वैद्यक शास्त्र तो यही कहता है कि १६ वर्ष की लड़की और बीस वर्ष का लड़का होना चाहिये; तभी योग्य गर्भाधान हो सकता है। इससे कम उमर में अगर गर्भाधान किया जाय तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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