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( ६० ) कार सरीखा हलके से हलका प्रलोभन भी नहीं जीत सकतीं! क्या हमारी बहिन एसी ही स्त्रियों से रावण के प्रलोभन जीतने की आशा रखती हैं ? वहिन, सञ्ची विधवाएँ तो उस समय पैदा होगी जिस समय समाज में विधवाविवाह का खूब प्रचार होगा। विधवा और ब्रह्मचारिणी में बड़ा अन्तर है। पति मरने से विधवा होती है न कि ब्रह्मचारिणी । उसके लिये त्याग की ज़रूरत है और त्याग तभी हो सकता है, जब प्राप्ति हो या प्राप्ति की आशा हो।
अन्त में बहिन ने कहा है कि पाठ प्रकार के विवाहो में विधवाविवाह का उल्लंख नहीं है । परन्तु इन आठ तरह के विवाहों में कुमारी-विवाह, अन्यगोत्र विवाह, सजातीय विवाह
आदि का उल्लेख भी कहाँ है ? क्या ये सब विवाह भी नाजायज़ हैं ? बात यह है कि ये पाठ भेद विवाह की रीतियों के भेद है अर्थात् विवाह आठ तरह से हो सकता है । अर्थात् सजातीय विवाह, विजातीय विवाह, कुमारीविवाह, विधवा विवाह, अनुलोम विवाह, प्रतिलोम विवाह, आदि सभी तरह के विवाह आठ रीतियों से हो सकते हैं। इसीलिये कुमारी विवाह विधवा विवाह आदि भेदों को रीतियों में शामिल नहीं किया है। जैसे कुमारीविवाह के पाठ भेद हैं उसी तरह विधवाविवाह के भी पाठ भेद हैं।
प्राशा है बहिन को हमारे उत्तरों से सन्तोष होगा। अगर फिर भी कुछ शंका रहे तो मैं उत्तर देने को तैयार हूँ।
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